Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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अपरत्व होते हैं। विद्वान लोग वर्तना को काल का लक्षण कहते हैं ।
वर्तना का लक्षण :
प्रतिद्रव्यविपर्ययम् ।
अनुभूति: स्वसत्ताया: स्मृता सा खलु वर्तना । ( 41 )
प्रत्येक द्रव्य के एक-एक समयवर्ती परिणमनमें जो स्वसत्ता की अनुभूति होती है उसे वर्तना कहते हैं।
अन्तर्नीतैकसमया
कालद्रव्य की हेतुकर्तृता का वर्णन :
आत्मना वर्तमानानां द्रव्याणां वर्तनाकरणात्कालो
भजते
सब द्रव्य, अपनी-अपनी पर्यायोंरूप परिणमन स्वयं करता है फिर भी वर्तना का कारण होने से कालद्रव्य हेतुकर्तृता को प्राप्त होता है ।
कालद्रव्य की हेतुकर्तृता का समर्थन :
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यद्यपि कालद्रव्य स्वयं निष्क्रिय है तथापि इसकी हेतुकर्तृता विरूद्ध नहीं हैं क्योंकि निमित्तमात्र में भी हेतुकर्तृता मानी जाती है।
कला किस प्रकार कहाँ स्थित है ?
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न चास्य हेतुकर्तृत्वं निःक्रियस्य विरुध्यते । यतो निमित्तमात्रेऽपि हेतुकर्तृत्वमिष्यते ।। (43)
एकैकवृत्त्या लोकाकाशप्रदेशेषु
निजपर्ययैः ।
हेतुकर्तृताम् ।। (42)
प्रत्येकमणवस्तस्य रत्नराशिरिव
उस काल द्रव्य के क्रियारहित प्रत्येक अणु रत्नों की राशि के समान
लोकाकाश के प्रदेशों पर एक-एक स्थित है ।
व्यवहारकाल के परिचायक लिङ्ग:
व्यावहारिककालस्य
परिणामस्तथा
निष्क्रियाः ।
क्रिया । लिङ्गान्याहुर्महर्षयः।। (45)
च
परत्वं चापरत्वं परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व को महर्षियों ने व्यावहारिक. कालका
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स्थिता:।।(44)
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