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________________ अपरत्व होते हैं। विद्वान लोग वर्तना को काल का लक्षण कहते हैं । वर्तना का लक्षण : प्रतिद्रव्यविपर्ययम् । अनुभूति: स्वसत्ताया: स्मृता सा खलु वर्तना । ( 41 ) प्रत्येक द्रव्य के एक-एक समयवर्ती परिणमनमें जो स्वसत्ता की अनुभूति होती है उसे वर्तना कहते हैं। अन्तर्नीतैकसमया कालद्रव्य की हेतुकर्तृता का वर्णन : आत्मना वर्तमानानां द्रव्याणां वर्तनाकरणात्कालो भजते सब द्रव्य, अपनी-अपनी पर्यायोंरूप परिणमन स्वयं करता है फिर भी वर्तना का कारण होने से कालद्रव्य हेतुकर्तृता को प्राप्त होता है । कालद्रव्य की हेतुकर्तृता का समर्थन : 306 यद्यपि कालद्रव्य स्वयं निष्क्रिय है तथापि इसकी हेतुकर्तृता विरूद्ध नहीं हैं क्योंकि निमित्तमात्र में भी हेतुकर्तृता मानी जाती है। कला किस प्रकार कहाँ स्थित है ? Jain Education International न चास्य हेतुकर्तृत्वं निःक्रियस्य विरुध्यते । यतो निमित्तमात्रेऽपि हेतुकर्तृत्वमिष्यते ।। (43) एकैकवृत्त्या लोकाकाशप्रदेशेषु निजपर्ययैः । हेतुकर्तृताम् ।। (42) प्रत्येकमणवस्तस्य रत्नराशिरिव उस काल द्रव्य के क्रियारहित प्रत्येक अणु रत्नों की राशि के समान लोकाकाश के प्रदेशों पर एक-एक स्थित है । व्यवहारकाल के परिचायक लिङ्ग: व्यावहारिककालस्य परिणामस्तथा निष्क्रियाः । क्रिया । लिङ्गान्याहुर्महर्षयः।। (45) च परत्वं चापरत्वं परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व को महर्षियों ने व्यावहारिक. कालका For Personal & Private Use Only स्थिता:।।(44) www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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