________________
निमित्त कारण को गौण कारण (बाह्य कारण) कहते हैं। प्रत्येक द्रव्य में परिणमन शक्ति (अगुरुलघुत्व गुण) होती है जो कि परिणमन के लिए मुख्य कारण है। इस मुख्य कारण को सहायता पहुँचाने वाला गौण कारण है। जैसे - कुम्हार का चक्र नीचे के पत्थर के आधार पर परिभ्रमण करता है इस परिभ्रमण में चक्र की स्वयोग्यता मुख्य कारण है और नीचे का पत्थर गौण कारण है। इसी प्रकार द्रव्य परिणमन में स्वयोग्यता मुख्य कारण और कालद्रव्य गौण कारण है। इसलिये इस सूत्र में वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व काल द्रव्य के उपकार हैं।
(1 ) वर्तना :- धर्मादिक द्रव्य अपनी नवीन पर्याय के उत्पन्न करने में स्वयं प्रवृत्त होते हैं तो भी वह बाह्य सहकारी कारण के बिना नहीं हो सकती इसलिये उसे प्रवर्त्ताने वाला काल है । यही 'वर्तना लक्षण' काल द्रव्य का उपकार है।
(2) परिणाम :- एक धर्म की निवृत्ति करके दूसरे धर्म के पैदा करने रूप और परिस्पन्द से रहित द्रव्य की जो पर्याय है उसे परिणाम कहते हैं ।
(3) क्रिया :- द्रव्य में जो परिस्पन्द रूप परिणमन होता है उसे क्रिया कहते हैं। इसके दो भेद हैं (1) प्रायोगिक ( 2 ) वैनसिक । उनमें से गाड़ी आदि की प्रायोगिकी क्रिया है और मेधादिक की वैनसिकी।
(4) परत्वापरत्व :- परत्व और अपरत्व दो प्रकार का है - ( 1 ) क्षेत्रकृत (2) कालकृत। प्रकृत (यहां पर ) में कालकृत उपकार का प्रकरण है इसलिये कालकृत परत्व और अपरत्व को यहां ग्रहण किया गया है। ये सब वर्तनादिक काल के अस्तित्व का ज्ञान कराते हैं।
तत्त्वार्थसार में कहा भी है । -
कालद्रव्य का लक्षण :
स कालो यन्निमित्ताः स्युः परिणामादिवृत्तयः । वर्तनालक्षणं कथयन्ति विपश्चितः ॥ (40)
तस्य
( तत्त्वार्थसार, पृ. 98 तृतियाधिकार)
काल वह कहलाता है जिसके निमित्त से परिणाम, क्रिया, परत्व तथा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
305
www.jainelibrary.org