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यद्यपि 'उपग्रह' का प्रकरण है, फिर भी इस सूत्र में 'उपग्रह' शब्द के द्वारा पूर्व सूत्र में निर्दिष्ट सुख-दुःख, जीवित और मरण इन चारों का ही प्रतिनिर्देश किया है। इन चारों के सिवाय जीवों का अन्य कोई परस्पर उपग्रह नहीं है, किन्तु पूर्व सूत्र में निर्दिष्ट ही उपकार है ।
स्त्री-पुरुष की रति के समान परस्पर उपकार का अनियम प्रदर्शित करने के लिए पुन: 'उपग्रह' वचन का प्रयोग सुखादि में सर्वथा नियम परस्परोपकार का नहीं है, यह बताने के लिए पुनः उपग्रह वचन का प्रयोग किया है; क्योंकि कोई जीव अपने लिए सुख उत्पन्न करता हुआ कदाचित् दूसरे एक जीव को वादो जीवों को वा बहुत से जीवों को सुखी करता हैं और कोई जीव अपने को दुःखी करता हुआ एक जीव को, दो जीवों को या बहुत से जीवों को दुःखी करता है अथवा कभी एक, दो, बहुत जीवों तथा अपने आपके लिए सुख या दुःख करता हुआ दूसरे एक वा दो वा बहुत से जीवों के लिए सुख दुख उत्पन्न करता है। इस प्रकार अन्यत्र भी समझना चाहिए। स्वयं दुःखी भी दूसरे को सुखी और स्वयं सुखी भी दूसरे को दुःखी कर सकता है। अतः कोई निश्चित नियम नहीं है कि सुखी सुख पहुँचाये और दुःखी दुःख ही करें। काल का उपकार
वर्तना परिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य । ( 22 ) वर्तना-परिणाम-क्रियाः परत्वापरत्वे च जीवानाम् पुद्गलानाम् कालस्य उपकारो
भवति ।
The function of time is to assist substances in their continuing to exist (vartana) in their modifications ( parinama) in their movements (kriya) and in their priority (paratva) and non-priority or Juniority in time (aparatva).
वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल के उपकार हैं।
विश्व में जड़-चेतन में मूर्तिक- अमूर्तिक में जो सूक्ष्म-स्थूल, शुद्ध-अशुद्ध परिणमन (परिवर्तन) होता है वह परिणमन दो कारण से होता है ( 1 ) उपादान कारण ( 2 ) निमित्त कारण । उपादान कारण को मुख्य कारण (स्व कारण) एवं
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