Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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कही है उसमें एक समय मिला देने पर सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में जघन्य स्थिति होती है। सानत्कुमार और माहेन्द्र में जो साधिक सात सागर उत्कृष्ट स्थिति कही हैं उसमें एक समय मिला देने पर ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर में जघन्य स्थिति होती है। इसी प्रकार आगे भी जान लेना चाहिए।
नारकियों की जघन्य आयु का वर्णन
नारकाणां च द्वितीयादिषु।(35) The same rule applies to the ages of hellish beings i,e. the maximum age of 1st is the minimum of the 2nd and so on. दूसरी आदि भूमियों में नारकियों की पूर्व-पूर्व की उत्कृष्ट स्थिति ही अनन्तर-अनन्तर की जघन्य स्थिति है।
सूत्र में 'च' शब्द का प्रयोग पूर्व सूत्र में कथित क्रम के सम्बन्ध के लिए है। इस 'च' शब्द से “परत : परत : पूर्वा-पूर्वानन्तरा!" इत्यादि सूचित
क्रम का सम्बन्ध हो जाता है। इसका यह अर्थ है कि, रत्नप्रभा नामक नारक . में नारकियों की जो एक सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है वही शर्करा प्रभा में
नारकियों की जघन्य स्थिति एक सागरोपम प्रमाण है। जो शर्कराप्रभा की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागर से कुछ अधिक है, वही स्थिति बालुकाप्रभा नामक तीसरे नरक में जघन्य है; बालुकाप्रभा की उत्कृष्ट स्थिति जो सात सागर है वही पंकप्रभा की जघन्य स्थिति सात सागर है। पंकप्रभा की जो 10 सागर की उत्कृष्ट स्थिति है वही धूमप्रभा की जघन्य स्थिति है। धूमप्रभा. की जो 17 सागर है वही तम:-प्रभा की जघन्य स्थिति है। तम :प्रभा की जो 22 सागर उत्कृष्ट स्थिति है वही महातमप्रभा की जघन्य स्थिति है। प्राथमिक स्वाध्याय रत जनों के लिये सरल करने के लिये सातों पृथ्वियों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु यहाँ दे रहे हैं।
(1) रत्नप्रभा की उत्कृष्ट आयु 1 सागर, जघन्य 10 हजार वर्ष है। (2) शर्कराप्रभा की उत्कृष्ट आयु 3 सागर, जघन्य । सागर है। (3) बालुकाप्रभा की उत्कृष्ट आयु 7 सागर, जघन्य 3 सागर है। (4) पङ्कप्रभा की उत्कृष्ट आयु 10 सागर, जघन्य 7 सागर है। (5) धूमप्रभा की उत्कृष्ट आयु 17 सागर, जघन्य 10 सागाने
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