Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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अध्याय-5 __अजीवतत्त्व का वर्णन अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः। (1)
The Substances of the universe may be divided into two chief categories: Living and Non-Living; or Soul and Non-Soul.
The Non-Living-Continuum comprises : Dharma - Medium of Motion for Soul and Matter, Adharma - Medium of rest for Soul and matter, Akasa - Space Pudgala - Matter and Energy, and
Kala - Time धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल ये अजीवकाय हैं।
सम्यग्दर्शन के कारणभूत अर्थात् श्रद्धेय (श्रद्धा करने योग्य) द्रव्यों में से जीव द्रव्य का वर्णन प्रथम अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक सविस्तार से किया गया है। इस अध्याय में अजीव द्रव्यों का वर्णन सूत्रबद्ध सारगर्भित वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किया गया है। स्वजीव द्रव्य को जानने के लिये पर अजीव द्रव्य का ज्ञान होना आवश्यक है क्योंकि जब तक स्व एवं पर का ज्ञान नहीं होगा तब तक स्व का ग्रहण एवं पर का त्याग नहीं हो सकता। छहढाला में कहा है-“बिन जाने ते दोष गुणन को, कैसे तजिये गहिये।" अनादि काल से जीव एवं अजीव (पुद्गल कर्म परमाणु) का संश्लेष सम्बंध हुआ है जिसके कारण जीव, पुद्गल से प्रभावित होकर मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचास्त्रि रूप में परिणत होकर स्व-पर ज्ञान के भेद से रहित होकर स्व द्रव्य को पर द्रव्य एवं पर द्रव्य को स्व द्रव्य मान बैठा है। इसके कारण भी बीव अनादिकाल से भ्रमण करता हुआ अनन्त दुःख को भोग रहा है। इसलिए स्व द्रव्य को जानने के लिये पर द्रव्य को जानना अनिवार्य है। स्व.द्रव्य को जानकर, स्वद्रव्य को अन्य द्रव्य से अलग करना मोक्षमार्ग का, मोक्ष प्राप्ति का प्रधान एवं प्रथम कारण है।
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