Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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निष्क्रियाणि च।
आ-आकाशात् निष्क्रिण च भवन्ति। Dharma, Adharma, Akasa, these three are not capable of moving from one place to another. तथा निष्क्रिय है।
धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य निष्क्रिय हैं। अंतरंग और बहिरंग निमित्त से उत्पन्न होने वाली जो पर्याय द्रव्य के एक क्षेत्र से, दूसरे क्षेत्र में प्राप्त कराने का कारण है वह 'क्रिया' कहलाती है और जो इस प्रकार की क्रिया से रहित है वह 'निष्क्रिय' कहलाते हैं। अर्थात् इन तीनों द्रव्य के प्रदेश अनादि काल से जहाँ पर थे अभी भी वहाँ है और अनन्त भविष्यत् में भी वहीं रहेंगे उनसे किसी प्रकार स्थानान्तरण नहीं होगा। गोम्मट्टसार जीवकाण्ड में कहा भी है
सव्वमरूवी दव्वं, अवट्ठिदं अचलिआ पदेसा वि। रूवी जीवा चलिया, तिवियप्पा होंति हु पदेसा॥(592)
(पृ.267) सम्पूर्ण अरूपी द्रव्य अवस्थित हैं। जहाँ स्थित हैं वहाँ ही सदा स्थित रहते हैं, तथा इनके प्रदेश भी चलायमान नहीं होते। किन्तु रूपी (संसारी)
जीव द्रव्य चल हैं, सदा एक ही स्थान पर नहीं रहा करते तथा इनके प्रदेश · भी तीन प्रकार के होते है। ___ धर्म, अधर्म, आकाश, काल और मुक्त जीव ये अपने स्थान से कभी चलायमान नहीं होते तथा एक स्थान पर ही रहते हुए भी इनके प्रदेश भी तीन प्रकार के होते हैं। चल भी होते हैं, अचल भी होते हैं तथा चलाचल भी होते हैं। विग्रहगतिवाले जीवों के प्रदेश चल ही होते हैं। और शेष जीवों के प्रदेश चलाचल होते हैं। आठ मध्य प्रदेश अचल होते हैं और शेष प्रदेश चलित हैं। मुक्त जीव के सर्व प्रदेश अचल होते हैं।
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