Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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आकाशस्यानन्ता:। (9) आकाशस्यानन्ताः प्रदेशाः सन्ति।
The number of Pradesas in space is infinite. आकाश के अनन्त प्रदेश हैं।
छहों द्रव्य में सबसे विशालतम द्रव्य आकाश है। यह द्रव्य सर्वव्यापी है। इसके प्रदेश अनन्त हैं। जिसका अन्त (अवसान) नहीं है उसको अनंत कहते हैं। लोकाकाश, आकाश का एक बहुत छोटा भाग है और इसके असंख्यात प्रदेश हैं। अलोकाकाश सम्पूर्ण दिशाओं में अनन्त तक फैला हुआ है।
संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम्। (10) संख्येया अंखंख्येयाश्च (अनन्ता: अनन्तानन्ता:) पुद्गलानाम् प्रदेशाः
भवन्ति।
Matter consists of numerable, innumerable and intinite parts according as we consider the different molecular combinations.
पुद्गलों के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश हैं।
मुख्य रूप से पुद्गल के दो भेद हैं (1) अणु (2) स्कंध। अणु सर्वदा एक प्रदेशी होता है। परन्तु स्कंध संख्यात्, असंख्यात एवं अनन्त प्रदेशी भी होता है। द्रव्य संग्रह में कहा भी है
होंति असंखा जीवे धम्माधम्मे अणंत आयासे।
मुत्ते तिविह पदेसा कालस्सेगो ण तेण सो काओ॥(25)
जीव, धर्म तथा अधर्म द्रव्य में असंख्यात प्रदेश हैं और आकाश में अनन्त हैं। मूर्त (पुद्गल) में संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त प्रदेश हैं और काल के एक ही प्रदेश है। इसलिये काल काय नहीं है। यहाँ शंका होना स्वाभाविक है कि असंख्यात प्रदेशी वाले लोकाकाश में अनंत प्रदेश वाले स्कंध कैसे रह सकते हैं। इसका उत्तर यह है कि परमाणु एवं स्कन्ध में सूक्ष्म परिणमन होने के कारण तथा आकाश में अवगाहन शक्ति होने के कारण अनंत प्रदेश वाले पुद्गल स्कन्ध आकाश में रह सकते हैं। एक आकाश प्रदेश में
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