Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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भी गति-स्थिति के लिए बाह्य निमित्त की आवश्यकता पड़ती है। गति के लिए धर्म द्रव्य उदासीन कारण है एवं स्थिति के लिए अधर्म द्रव्य उदासीन कारण है। यहां पर धर्म द्रव्य एक अमूर्तिक गति माध्यम द्रव्य है, न कि पुण्य या धर्म है। इसी प्रकार अधर्म द्रव्य स्थिति माध्यम अमूर्तिक द्रव्य है न कि पाप है।
जिस प्रकार स्व शक्ति से गमन करती हुई रेल के लिए रेल की पटरी की परम आवश्यकता होती है, रेल की पटरी के बिना रेल नहीं चल सकती है, उसी प्रकार, धर्म द्रव्य क्रिया के लिए नितांत आवश्यक है। विश्व की समस्त स्थानांतरित रूप क्रिया (एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए गमन) बिना धर्म द्रव्य की सहायता से नहीं हो सकती है, यहाँ तक कि श्वासोच्छ्वास के लिए रक्त संचालन के लिये, पलक झपकने के लिये, अंग-प्रत्यंग संकोच-विस्तार के लिये, तार, बेतार के माध्यम से शब्द भेजने के लिये, रेडियो, टी.वी., सिनेमा आदि में संवाद एवं चित्र भेजने के लिये, देखने के लिए एवं सुनने के लिये, ग्रह से ग्रहान्तर तक संवाद, चित्र भेजने के लिये, सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र आदि के गमनागमन के लिये धर्म द्रव्य की सहायता नितांत आवश्यक है। धर्म द्रव्य के अभाव में ये क्रियायें नहीं हो सकती हैं।
जैसे गमन करते हुए पथिक वृक्ष की छाया में बैठता है तब छाया ठहरने के लिये उदासीन कारण बनती है। जैसे-रेल को ठहराने के लिए स्टेशन की रेलपटरी सहायक होती है, बैठने के लिये कुर्सी, पाटा, चटाई आदि सहायक होती है, किन्तु कुर्सी आदि जबरदस्ती मनुष्य को पकड़कर नहीं बैठाती। वैसे
ही धर्मद्रव्य जीव और पुद्गल को गति में सहायक होता है। इसलिये उदासीन ' शब्द कहा है जो कि महत्त्व का है।
अधर्म द्रव्य के अभाव से स्थिर रहने रूप क्रिया नहीं हो सकती है। इसके अभाव से विश्व के सम्पूर्ण जीव एवं पुद्गल अनिश्चित एवं अव्यवस्थित रूप से सर्वदा चलायमान ही रहेंगे। टेबल के ऊपर पुस्तक रखने पर दूसरे समय में पुस्तक वहाँ पर नहीं रहेगी। गाड़ी को रोकने पर भी गाड़ी नहीं रूकेगी, कोई भी व्यक्ति कुछ निश्चित समय के लिए एक ही स्थान में खड़ा या बैठा नहीं रह सकता है। यहाँ तक की सम्पूर्ण विश्व यदृच्छाभाव से यत्र तत्र फैल
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