Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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द्रव्यों की विशेषता नित्यावस्थितान्यरूपाणि । (4)
धर्मादीनि कालः, जीवाश्च द्रव्याणि नित्यावस्थितान्यरूपाणि ।
The Six Substances Jiva, Ajiva, Dharma, Adharma, Akasa, and Kala are permanent in their nature, fixed in number as the sole constituents of the universe and (with the exception of pudgala Dravya) are all without form, i.e., they are devoid of the characteristics of Matter, viz. touch, taste, smell and colour.
उक्त द्रव्य नित्य है, अवस्थित और अरूपी है।
धर्म, अधर्म, आकाश, एवं जीव द्रव्य नित्य ( शाश्वतिक, अविनाशी, ध्रुव) अवस्थित (अपनी संख्या एवं प्रदेश को नहीं त्यागने वाला) एवं अरूपी
है।
नित्य - वस्तु के स्वभाव का नाश नहीं होना ही 'नित्यत्व' है। जिस भाव से पदार्थ उपलक्षित है उसका उसी रूप से रहना नित्य है । इस द्रव्य के भाव का नाश नहीं होना ही नित्यत्व है, धर्मादि द्रव्य जिन-जिन गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहनहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, आदि विशेष लक्षणों से तथा अस्तित्त्व आदि सामान्य लक्षण से युक्त है उन उन स्वभावों का द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा कभी नाश नहीं होता। इसी तद्भावाव्यय को नित्य कहते
है।
2. अवस्थित - ये द्रव्य इयत्ता (संख्या) का उल्लंघन नहीं करते अतः • अवस्थित हैं। यें धर्म, अधर्म आदि छहों द्रव्य कभी अपनी छह संख्या का उल्लंघन नहीं करते । (छह संख्या को नहीं छोड़ते), न तो कभी सात होते हैं और न कभी पाँच, अतः अवस्थित हैं। अथवा धर्म, अधर्म, लोकाकाश और एक जीव में तुल्य असंख्यात प्रदेश हैं। अलोकाकाश के अनन्त और पुद्गल में संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश बताये गये हैं, उनमें न्यूनाधिकता नहीं होती, वैसे ही अवस्थित रहते हैं इसलिए अवस्थित कहे जाते हैं।
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