Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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ये लोकान्तिक देव पंचम ब्रह्मस्वर्ग के अन्त में निवास करते हैं। इन देवों के पुण्य समान होने से इनमें हीनाधिकता नहीं पाई जाती हैं इसलिए ये स्वतंत्र रूप में रहते हैं।
विषय रति से रहित होने के कारण देवऋषि हैं। दूसरे देव इनकी अर्चा करते हैं। चौदह पूर्वो के ज्ञाता हैं और वैराग्य कल्याणक के समय तीर्थंकर को संबोधन करने में तत्पर हैं। अनुदिश तथा अनुत्तरवासी देवों में अवतार का नियम
विजयादिषु द्विचरमा।(26) In the 4अनुत्तर heavensi.e.Vijaya,etc.i.e.Vijayanta, Jayanta, Aparajita and the 9 3751&et those heavenly are born who shall attaih liberation at the most ofter having incarnated as a human beings twice. विजयादिक में दो चरमवाले देव होते हैं।
विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और नौ अनुदिशों के देव दो चरमवाले होते हैं। देह का चरमपना मनुष्य भव की अपेक्षा लिया है। जिसके दो चरम भव होते हैं वे द्विचरम कहलाते हैं। जो विजयादिक से च्युत होकर और सम्यक्त्व को न छोड़कर मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और सयंम की आराधना कर पुनः मनुष्य भव को प्राप्त करके सिद्ध होते हैं। इस प्रकार यहाँ मनुष्य भव की अपेक्षा द्विचरमपना है।
तिर्यञ्च कौन है?
औपपादिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः। (27) Other than those born by instantaneous rise (i.e. hellish and celestial beings and human beings, and sub human beings i.e. Triyancha. उपपाद जन्म वाले और मनुष्यों के सिवा शेष सब जीव तिर्यंचयोनि वाले
सम्पूर्ण संसारी जीवों को चार भागों में विभक्त किया गया है। यथा (1) देव, (2) नारकी, (3) मनुष्य, (4) तिर्यंच।
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