Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
ग्रैवेयकों से पहले तक कल्प है।
सौधर्म स्वर्ग से लेकर ग्रैवेयक के पहले-पहले तक इन्द्र, सामानिक आदि के भेद होने के कारण उसे कल्प कहते हैं परन्तु ग्रैवेयक से लेकर सर्वार्थसिद्धि तक इन्द्रादि के भेद नहीं होने के कारण कल्पातीत है।
लौकन्तिक देव
ब्रह्मलोकालया लौकान्तिकाः। (24) (Having) Brahma-loka (as) abode (are) Laukantikas. The Laukantikas heavenly beings live in the highest parts of the 5th heaven, called Brahmaloka. लौकान्तिक देवों का ब्रह्मलोक निवास स्थान हैं। __आकर के उसमें जो लीन होते हैं- वह आलय कहलाता है। जिसमें प्राणी आकर लीन होते हैं, उसे आलय एवं निवास कहते हैं। ब्रह्मलोक जिनका आलय है वे ब्रह्मलोकालया कहलाते है।
‘ब्रह्मलोक' सामान्य पद होने पर भी पाँचवें स्वर्ग के निवासी सभी लौकान्तिक नहीं होते क्योंकि ब्रह्मलोक का अन्त लोकान्त और उसमें रहने वाले लौकान्तिक होते हैं। इस लौकान्तिक का फलितार्थ ब्रह्मलोक के अन्त में रहने वाले लौकान्तिक हैं। अथवा जन्म जरा मरण से व्याप्त लोक (संसार) है, उस लोक का अन्त करना जिनका प्रयोजन है वे लोकान्तिक हैं।
. वे लौकान्तिक निकट संसारी है। वहाँ से च्युत होकर गर्भवास (मानव भव) प्राप्त कर नियम से मोक्ष चले जाते हैं।
.. लौकान्तिक देवों के नाम सारस्वतादित्यवहृयरुणगर्दतोयतुषिताव्यावाधारिष्टाश्च । (25) (These Laukantikas are of the following & classes:) सारस्वत्, आदित्य, वह्नि, अरूण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अरिष्ट ये लौकान्तिक देव हैं।
· 255
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org