Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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वे दो प्रकार के हैं कल्पोपपन्न और कल्पातीत।
इन्द्र आदि दस प्रकार की कल्पनाएँ जिसमें पायी जाये वे कल्पोपपन्न। जहाँ पर इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि दस प्रकार की कल्पना है - वह कल्पोपपन्न है। यद्यपि नवग्रैवेयक, नव अनुदिश, पञ्चानुत्तर आदि में नव आदि संख्याकृत कल्पना है - परन्तु वहाँ पर सभी अहमिन्द्र होने से इन्द्र आदि कल्पना उनमें नहीं है - इसलिए वे कल्पातीत कहलाते हैं। क्योंकि कल्पातीत व्यवहार में इन्द्र आदि दस प्रकार की कल्पना ही मुख्य रूप से विवक्षित है।
कल्पों का स्थितिक्रम
. उपर्युपरि। (18) The 16 heavens are situated i.e. pairs, one (pair) above the other (the graiveyakas, are also one above the other beyond the 16 heavens.
वे ऊपर-ऊपर रहते हैं। ये कल्पोपन्न और कल्पातीत वैमानिक देव ज्योतिष देवों के समान तिरछे रूप से या व्यन्तरों के समान विषम रूप से नहीं रहते हैं। वे ऊपर-ऊपर रहते हैं जैसे बहु मंजिल इमारत की मंजिल एक के ऊपर एक रहती है।
वैमानिक देवों के रहने का स्थान सौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठशुक्रमहाशुक्रशतार सहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसुप्रैवेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च। (19) (They कल्पवासी live ) in : . 1. सौधर्म 2. ईशान 3. सानतकुमार 4. माहेन्द्र 5.ब्रह्म 6. ब्रह्मोत्तर 7. लान्तव 8. कापिष्ठ 9. शुक्र 10. महाशुक्र 11. सतार 12. सहस्रार 13. आनत 14. प्राणत 15. आरण 16. अच्युत। सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत नौ ग्रैवेयक
और विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि में वे निवास करते हैं।
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