Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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धर्म से रहित व्यक्तियों को संक्षिप्त से हम अनार्य कह सकते हैं।
अथवा ऋद्धिप्राप्त, के भेद से आर्य दो प्रकार के हैं। गुण और गुणवानों जो सेवित हैं, वे 'आर्य' कहलाते हैं । वे आर्य दो प्रकार के हैं - एक 'ऋद्धिप्राप्त' और दूसरे 'अनुद्धिप्राप्त' ।
क्षेत्र, जाति, कर्म, चारित्र और दर्शन के भेद से अमृद्धि प्राप्त आर्य पांच प्रकार के हैं। जो ऋद्धि रहित आर्य हैं, वे पाँच प्रकार के हैं- क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कर्मार्य, चारित्रार्य और दर्शनार्य । काशी, कौशल आदि क्षेत्रों में उत्पन्न मानव क्षेत्रार्य कहलाते हैं। इक्ष्वांकु, भोज आदि जातियों में उत्पन्न मनुष्य जात्यार्य हैं । कर्मा तीन प्रकार के हैं- सावद्यकर्मार्य, अल्पसावद्य कर्मार्य और असावध कर्मार्थ ।
सावद्यकर्मार्य असि, मषि, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्यकर्म के भेद से छह प्रकार के हैं। तलवार, धनुष आदि शस्त्र - विद्या में निपुण असिकर्मार्य हैं। द्रव्य के आय-व्यय आदि के लेखन में कुशल मानव मषिकर्म आर्य हैं। हल, कुलिश, दन्ताल आदि कृषि (खेती) के उपकरण -विधान को जानने वाला- वा कृषिकार्य करने वाला कृषि कर्मार्य कहलाता है । लेखन, गणित, चित्रादि पुरुष की बहत्तर (72) कलाओं में चतुर मानव विद्याकर्मार्य है। धोबी, नापित, (नाई), लुहार, कुम्भकार, सुर्वणकार आदि शिल्प कर्मार्य हैं । चन्दनादि गंध, घृतादिरस, चावल आदि धान्य, कपास आदि आच्छादन (कपड़ा), मोती, माणिक्य, सुवर्ण आदि द्रव्यों का संग्रह करने वाले बहुत प्रकार के वाणिज्य कर्मार्य है । ये छहों प्रकार के मनुष्य अविरति में प्रवण (तत्पर) होने से ( व्रत रहित होने से ) सावद्य कर्मार्य कहलाते हैं। विरति - अविरति से युक्त होने से पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक श्राविकायें अल्प सावंद्य कर्मार्य हैं। कर्म क्षय करने में उद्यत, विरति में र यतिजन असावद्य कर्मार्य हैं।
चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-अधिगत चारित्रार्य और अनधिगत चारित्रार्य । चारित्रार्य के ये दो भेद बाह्य अनुपदेश और उपदेश की अपेक्षा से हैं। बाह्य उपदेश के बिना स्वयं ही चारित्र मोहनीय कर्म के उपशम से या क्षय से जो चारित्र परिणाम को प्राप्त होकर उपशांत कषाय और क्षीणकषाय को प्राप्त हुए
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