Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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थे। इससे सिद्ध होता है कि वर्तमान अवसर्पिणी काल के आदि में बहुदीर्घकाल पर्यन्त भारतवर्ष में भोग भूमिज आर्य रहते थे। अतएव कास्पियन सागर से आर्यों का आगमन भारतवर्ष में हुआ, यह कहना ऐतिहासिक सत्य-तथ्य के विरूद्ध है। अत: आर्य तथा अनार्य दोनों जाति भारत के प्राचीन अधिवासी हैं। वैदेशिक विद्वानों का अनुकरण करके कुछ भारतीय लोग भी भारतीय आर्यों को कास्पियन सागर के निकटवर्ती क्षेत्र से आने वाले मानकर स्वयं को विदेशी सिद्ध करते हुए स्वयं को लज्जानुभव नहीं करते हैं।
कर्मभूमि का वर्णन भरतैरवतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तर कुरुभ्यः। (37) Bharata, Airavata and Videha Ksetras except Deva Uttara Kurus are the only regions where we find Karma bhumisi.e. agriculture etc. for sustenance). This is also the region of piety and place from where liberation can be attained. देवकुरु और उत्तरकुरु के सिवा भरत, ऐरावत और विदेह ये सब कर्मभूमि
भरत, ऐरावत और विदेह ये प्रत्येक पाँच-पाँच हैं। ये सब कर्मभूमियाँ कही जाती हैं। इनमें विदेह का ग्रहण किया है इसलिए देवकुरू और उत्तरकुरु का भी ग्रहण प्राप्त होता है अत: उनका निषेध करने के लिए 'अन्यत्र देवकुरुत्तरकुरुभ्यः' यह पद रखा है। ‘अन्यत्र' शब्द का अर्थ निषेध है। देवकुरु, उत्तरकुरु, हैमवत, हरिवर्ष, रम्यक, हैरण्यवत् और अन्तर्वीप (लवण समुद्र स्थित द्वीप विशेष) ये भोग भूमियाँ कही जाती हैं। शंका- ‘कर्म भूमि' यह संज्ञा कैसे प्राप्त होती है ? समाधान- जो शुभ और अशुभ कर्मों का आश्रय हो उसे 'कर्म भूमि' कहते हैं। यद्यपि तीनों लोक कर्म का आश्रय है फिर भी इससे उत्कृष्टता का ज्ञान होता है कि ये प्रकर्ष रूप से कर्म का आश्रय है। सातवें नरक को प्राप्त करने वाले अशुभ कर्म का भरतादि क्षेत्रों में ही अर्जन किया जाता है इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि आदि स्थान विशेष को प्राप्त कराने वाले पुण्य कर्म का उपार्जन भी यहीं पर होता है। तथा पात्रदान आदि के साथ कृषि आदि छह प्रकार
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