Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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जाना जाता है।
ज्योतिष्क देवों का अशेष वर्णन
मेरुप्रदिक्षणा निवागत यो नृलोके। (13) In the human regions (i.e. the 2.5 dvipas, the stellars) always move round (their respective) mount Meru (but their nearest orbit to the
Central Meru in Jambudvipa has a radius of 1121 Yojanas. ज्योतिषी देव मनुष्य लोक में मेरु की प्रदक्षिणा करने वाले और निरन्तर गतिशील हैं।
प्रात: काल सूर्य पूर्व दिशा में उदय होता है एवं सायंकाल में पश्चिम दिशा में अस्त होता है। रात्रि में भी अनेक ज्योतिष्क ध्रुव नक्षत्रों को छोड़कर जो सायंकाल में जिस स्थान में दिखाई देते हैं, मध्यरात्रि में एवं प्रात:काल में उनका स्थान पश्चिम दिशा की ओर होता है। इसी प्रकार पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर स्थान परिवर्तन का कारण क्या है? इसका उत्तर यह है कि 'मेरु प्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके', अर्थात् ज्योतिष्कदेव मेरु की प्रदक्षिणा करके नित्य भ्रमण करते हैं। एवं 'तत्कृत : काल विभागः' अर्थात् इनकी गति के अनुसार दिन-रात्रि आदि काल विभाग होता है।
इगिवीसेयारसयं विहाय मेरु चरंति जोइगणा। चंदतियं वज्जित्ता सेसा हु चरंति एक्कपहे।
(त्रिलोकसार) (345) ज्योतिष्क देवों के समूह मेरू पर्वत को 1121 यो. (4484000 मील) छोड़कर प्रदक्षिणा रूप से गमन करते हैं। चन्द्र, सूर्य एवं ग्रह को छोड़कर शेष सभी ज्योतिष्क देव एक ही पथ में गमन करते है। इन तीनों के अनेक गति-पथ हैं। ज्योतिष्क देवों के गमन का कारण-मनुष्य लोक संबन्धी ज्योतिष्क देव नित्य क्यों परिभ्रमण करते हैं? उनके परिभ्रमण का क्या कारण है? उन विमानों को वहन करके कौन ले जाता है ? इत्यादि अनेकों प्रश्नों का उत्तर जैनाचार्यों ने निम्नोक्त प्रकार दिया है:
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