Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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सेना के समान देव होते हैं उनको अनीक कहते हैं। 8. प्रकीर्णक - पुरवासी समान प्रकीर्णक हैं। जैसे यहाँ पर पौरजन तथा देशवासी लोक राजा की प्रीति के कारण होते हैं उसी प्रकार पुरजन, जनपदजन के समान इन्द्र की प्रीति के कारणभूत प्रकीर्णक देव होते हैं। 9. आभियोग्य - दासी-दास के समान आभियोग्य देव होते हैं। जैसे यहाँ पर दास लोग वाहन आदि के द्वारा व्यापार करते हैं उसी प्रकार स्वर्गों में आभियोग्य जाति के देव वाहन (हाथी, विमान) आदि के द्वारा इन्द्र, सामानिक आदि देवों का उपकार करते हैं। अभिमुख्य (सेवा मुख्य) के योग आभियोग कहलाते हैं। अभियोग में होने वाले आभियोग्य कहलाते हैं। . किल्विषिक - अन्त्यवासी (गाँव के बाहर रहने वाले भंगी आदि समान) स्थानीय किल्विषिक कहलाते हैं। किल्विष (पाप) जिसके हो वह किल्विषिक कहलाता है। ये अन्त्यवासियों के समान होते हैं। (ये इन्द्र की बाह्य मध्यम
और आन्तरिक तीनों सभाओं में प्रवेश नहीं कर सकते)। व्यंतर और ज्योतिषीदेवों में इंद्र आदि भेदों की विशेषता त्रायस्त्रिंशलोकपाल वा व्यन्तरज्योतिष्काः। (5) But the peripatetic and stellar celestial beings the grades of Trayastrinsa like minister or priest, and Lokapala like the police, are denied. किन्तु व्यन्तर और ज्योतिष्क देव त्रायस्त्रिंश और लोकपाल इन दो भेदों से रहित हैं। व्यन्तर और ज्योतिषियों में त्रायस्त्रिंश और लोकपाल इन दो भेदों के सिवा शेष आठ भेद जानना चाहिए।
देवों में इन्द्रों की व्यवस्था
पूर्वयोर्दीन्द्राः। (6)
In the first two/i.e. Residential and peripatetic orders; there are) two Indras (or kings in each of them 10 and 8 classes respectively)
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