Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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क्षेत्र के मध्य में भरत क्षेत्र के विजया पर्वत के समान रजतमय विजया पर्वत समझना चाहिए। भरत क्षेत्र के समान विजयार्ध पर्वत और रक्ता, रक्तोदा नदी के कारण ऐरावत क्षेत्र के छह खण्ड हो जाते हैं। अर्थात् ऐरावत क्षेत्र तथा भरत क्षेत्र में बहुत कुछ रचनायें, व्यवस्थायें एक समान हैं।
क्षेत्रों का विभाग करने वाले 6 कुलाचलों के नाम तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरूक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः। (11) Dividing these 7 क्षेत्र there are 6 mountains they are हिमवन महाहिमवन् निषध नील, रूक्मि and शिखरिन these mountains run east to west. उन क्षेत्रों को विभाजित करने वाले और पूर्व पश्चिम लम्बे ऐसे हिमवान् महाहिमवान्, निषध, नील, रूक्मि और शिखरिण ये छह वर्षधर पर्वत हैं।
भरत क्षेत्रादि का विभाजन करने वाले होने से ये पर्वत 'तद्विभाजन:' कहलाते हैं। पूर्व पश्चिम तक लम्बे होने से 'पूर्वापरायता:' कहलाते हैं। ये छहों पर्वत अपने पूर्व और पश्चिम दोनों ओरों के अग्रभाग से लवण जलधि का स्पर्श करते है। एक दूसरे से पृथक्-पृथक् भरत आदि क्षेत्रों (वर्षों) को धारण करते हैं, वा इनका विभाग करते हैं-इसलिये ये वर्षधर कहलाते हैं। प्रश्न - हिमवान् पर्वत का हिमवान् नाम क्यों पड़ा? उत्तर - हिम (बर्फ) के सम्बन्ध से हिमवान् कहलाता है। अर्थात् हिम जिसमें
पाया जाता है, वह हिमवान् है। शंका - हिम बर्फ तो अन्य पर्वतों पर भी पाया जाता है? समाधान – यद्यपि अन्य पर्वतों में भी हिम पाया जाता है तथापि रूढ़ि से ही
... इसकी हिमवान् संज्ञा है। प्रश्न - हिमवान् पर्वत कहाँ पर हैं? उत्तर - भरत और हैमवत क्षेत्र की सीमा में स्थित है। भरत और हैमवत
क्षेत्र की सीमा में व्यवस्थित (स्थित) क्षुद्र हिमवान् पर्वत् है, ऐसा
जानना चाहिये। प्रश्न - इसको क्षुद्र हिमवान् क्यों कहते हैं ?
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