Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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तान्नाम्ना भारतं वर्षमिति हासीज्जनास्पदम्।
हिमाद्रेरासमुद्रा क्षेत्रं चक्रभृतामिदम् ।।(59) इतिहास के जानने वालों का कहना है कि, जहां अनेक आर्य पुरूष रहते हैं ऐसा यह हिमवत् पर्वत से लेकर समुद्र पर्यन्त का चक्रवर्तियों का क्षेत्र . उसी ऋषभपुत्र भरत के नाम से "भारतवर्ष" रूप से प्रसिद्ध हुआ है।
हिन्द धर्म में भी ऋषभपुत्र भरत से इस देश का नाम भारत सर्वत्र पाया जाता है इसका विस्तृत वर्णन 'ऋषभपुत्रभरत से भारत' मेरे (कनकनंदी) द्वारा रचित पुस्तक में है। वहां से विज्ञ जन अवलोकन करें।
नाभे: पुत्रश्च ऋषभ: ऋषभाभारतोऽभवत्, . तस्य नाम्नात्विदं वर्ष भारतं चेति कीर्त्यते।
(स्कन्ध पुराण माहेशवर खण्ड कौमार खण्ड(अ.37) नाभि के पुत्र ऋषभदेव और ऋषभदेव के पुत्र भरत हुए। उन्हीं भरत के नाम से इस प्रदेश का नाम भारत प्रसिद्ध है।
आसीत्पुरा मुनिश्रेष्ठः भरतो नाम भूपतिः। आर्षभोयस्य नाम्वेदं भारत खण्डमुच्यते भूपति॥
(नारद पुराण) भरतक्षेत्र का अवस्थान- यह भरतक्षेत्र हिमवान् पर्वत और तीन समुद्रों के मध्य में है। हिमवान् पर्वत के और पूर्व-दक्षिण एवं पश्चिम में इन तीन समुद्रों के मध्य में भरतक्षेत्र है। अर्थात् जिसके उत्तर में हिमवान् पर्वत है तथा पूर्व, दक्षिण और पश्चिम दिशा में समुद्र है। इस क्षेत्र के गंगा, सिन्धु और विजयार्ध पर्वत से विभक्त होकर छह खण्ड हो जाते हैं।
विजयार्ध पर्वत- पचास योजन चौड़ा, पच्चीस योजन ऊँचा, संवा छह योजन अवगाहन वाला रजताचल इस अन्वयार्थ नाम वाला विजयार्ध पर्वत है। अर्थात् यह पर्वत रजत-चाँदी के समान धवल है। अत: यह रजताचल इस सार्थक नाम वाला है। चक्रवर्ती के विजयक्षेत्र की अर्ध सीमा इस पर्वत से निर्धारित होती है अत: इसका नाम विजयार्ध है-1. गुण से यह रजताचल है- अर्थात् चाँदी से निर्मित एवं शुभ्र वर्ण है। इसका पचास योजन विस्तार
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