Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
हवा से 14 गुणा हल्की होने के कारण वह बैलून ऊपर ही ऊपर उड़ता है, तो शुद्ध जीव, जो पूर्णत: वजन (भार) शून्य है, का ऊपर गमन करना स्वाभाविक है। पुद्गल; में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, भारादि के साथ - 2 स्थानान्तरित गति शक्ति युक्त होने से पुद्गल का अधोगौरव स्वभाव होना भी स्वाभाविक है। यहाँ पर जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि जीव की स्वाभाविक गति उर्ध्वगमन स्वरूप है तो यह संसारी जीव विभिन्न प्रकार की वक्रादि गति से विश्व के विभिन्न भाग में क्यों परिभ्रमण करता है ?.
इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए अमृतचंद्र सूरि बताते हैं :
अधस्तिर्यक्तथोध्व च जीवानां कर्मजा गतिः । उद्रर्ध्वमेव स्वभावेन भवति क्षीणकर्मणाम् ॥ ( 34 )
जीव की संसार अवस्था में जो विभिन्न गति होती है, वह स्वाभाविक गति नहीं है। जीव की संसारावस्था की अधोगति, तिर्यक्गति, उर्ध्वगति कर्म जनित है। सम्पूर्ण कर्म से रहित जीव के केवल एक स्वाभाविक उर्ध्वगति ही होती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन के गति सम्बन्धी प्रथम सिद्धान्त के अनुसार
"A body at rest will remain at rest and a body moving with uniform velocity in a straight line will continue to do unless an external force is applied to it."
: अर्थात् एक द्रव्य, जो विराम अवस्था में है वह विरामावस्था में ही रहेगा तथा एक द्रव्य जो सीधी रेखा में गतिशील है, वह गतिशील ही रहेगा, जब तक द्रव्य की अवस्था में परिवर्तन करने के लिए कोई बाह्य बल न लगाया जाए। ( एक द्रव्य तब तक स्थिर रहता है जब तक बाह्य शक्ति का प्रयोग उसको गतिशील कराने में नहीं होता है तथा एक द्रव्य अविराम गति से एक सीधी रेखा में तब तक चलता रहता है, जब तक उस पर किसी बाह्य शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता है।)
कोई भी द्रव्य यदि किसी एक दिक् की ओर गति करता है, तो वह द्रव्य उस दिक् में अनन्त काल तक अविराम, अपरिवर्तित गति से गति करता ही रहेगा, जब तक कोई विरोधी शक्ति या द्रव्य उस गति का विरोध नहीं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
153
www.jainelibrary.org