Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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स्त्री
छादयदि सयं दोसे, णयदो छाददि परं वि दोसेण । छादणसीला जम्हा, तम्हा सा वण्णिया इत्थी | [ 274 ]
जो मिथ्यादर्शन अज्ञान असंयम आदि दोषों से अपने को आच्छादित करे और मृदुभाषण, तिरछी चितवन आदि व्यापार से जो दूसरे पुरूषों को भी हिंसा, अब्रह्म आदि दोषों से आच्छादित करे, उसको आच्छादन - स्वभावयुक्त होने से स्त्री कहते हैं ।
यद्यपि तीर्थंकरों की माता सम्यक्त्वादि गुणों से भूषित दूसरी भी बहुत सी स्त्रियाँ अपने को तथा दूसरों को दोषों से आच्छादित नहीं भी करती हैंउनमें यह लक्षण नहीं भी घटित होता है तब भी बहुलता की अपेक्षा यह निरूक्ति सिद्ध लक्षण किया है। निरूक्ति के द्वार मुख्यतया प्रकृति प्रत्यय से निष्पन्न अर्थ का बोधमात्र कराया जाता है ।
नपुंसक -
णेवित्थी णेव पुमं, णउंसओ उहयलिंगवदिरित्तो । इट्ठावग्गिसमाणगवेयणगरूओ कलुसचित्तो ॥ [275)
जो न स्त्री हो और न पुरूष हो ऐसे दोनों की लिंगों से रहित जीव को नपुंसक कहते हैं। इसके अवा (भट्ठा) में पकती हुई ईंट की अग्नि के समान तीव्र कषाय होती है। अतएव इसका चित्त प्रतिसमय कलुषित रहता
(पृ.150)
अकालमृत्युकिनकीनहींहोती ? औपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येयवर्षायुषोऽनपवर्त्यायुष: 1 ( 53 )
Those who are born by instantaneous rise ie hellish नारका : and Celestial beings देवा : those who are in their last incarnation चरमदेह with the highest kind of physical body and those whose age is innumerable years e.g, in a condition of life where there is all enjoyment and no labour like agriculture etc. these three live the full span of
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