Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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their life. It can never be cut short by themselves or others.
उपपादजन्मवाले, चरमोत्तम देह वाले और असंख्यात वर्ष की आयु वाले जीव अपवर्त्य आयु वाले होते हैं।
उपपाद जन्म देव - नारकी के होते है। इसलिए देव - नारकियों के अकाल मरण नहीं होता है अर्थात् इनकी आयु अनपर्वत्य आयु नहीं है।
'चरम' शब्द अन्तवाची है, इसलिये उसी जन्म में निर्वाण के योग्य हो उसका ग्रहण करना चाहिये । चरम - अन्त का है शरीर जिनका, वे 'चरम देह' कहलाते हैं । परीत संसारी उसी भव में निर्वाण प्राप्त करने योग्य को चरम शब्द से ग्रहण किया जाता है।
'उत्तम' शब्द उत्कृष्ट वाची है। इससे चक्रवर्ती आदि का ग्रहण होता है। यह उत्तम शब्द उत्कृष्ट वाची है- उत्तम शरीर जिनका हो वे उत्तम देह कहलाते हैं। इस उत्तम शब्द से चक्रवर्ती आदि का ग्रहण करना । पल्यादि: के द्वारा गम्य आयु जिसके है वह असंख्येय वर्षायुष वाले कहलाते हैं। वे उत्तर कुरू आदि भोग - भूमि में उत्पन्न होने वाले हैं।
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बाह्य कारणों के कारण आयु का ह्रास होना अपवर्त है। बाह्य उपघात के निमित्त विष शस्त्रादि के कारण आयु का हास होता है। वह अपवर्त है अपवर्त आयु जिनके है वे अपवर्त आयु वाले और जिनकी आयु का अपवर्त नहीं होता वे अनपवर्त आयु वाले देव और नारकी, चरम शरीरी और भोग भूमिया जीव हैं- बाह्य कारणों से उसका अपवर्तन नहीं होता ।
'चरम' शब्द उत्तम का विशेषण है। चरम ही उत्तम देह जिसका वह चरमोत्तम देह अर्थात् अंतिम उत्तमदेह वाले को चरमोत्तम देह कहते हैं ।
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चक्रवर्ती आदि को देह उत्तम होते हुए भी जो चक्रवर्ती आदि तद्भव में मोक्ष नहीं जाते हैं उनका अकाल मरण भी शास्त्र में पाया जाता है जैसेसुभौम चक्रवर्ती, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती, नारायण श्रीकृष्ण आदि की अपमृत्यु हुई है। इससे सिद्ध होता है कि उत्तम शरीर धारी के चरम शरीर धारी की अपमृत्यु
नहीं होती है।
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