Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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के योग्य पुद्गलों का ग्रहण करता है। देव और नारकियों की अचित्त- योनि होती है, क्योंकि उनके उपपाददेश के पुद्गल प्रचयरूप योनि अचित्त है। गर्भजों की मिश्र योनि होती है, क्योंकि उनकी माता के उदर में शुक्र और शोणित अचित्त होते हैं जिनका सचित्त माता की आत्मा से मिश्रण है इसलिए वह मिश्र योनि है। समूछेनों की तीन प्रकार की योनियाँ होती हैं। किन्हीं की सचित्त योनि होती हैं, किन्हीं की अचित्तयोनि होती है और किन्हीं की मिश्र योनि होती है। साधारण शरीर जीवों की सचित्त योनी होती है। क्योंकि ये एक-दूसरे के आश्रय से रहते हैं। इनसे अतिरिक्त शेष संमूर्च्छन जीवों के अचित्त
और मिश्र दोनों प्रकार की योनियाँ होती हैं। देव और नारकियों की शीत और उष्ण दोनों प्रकार की योनियाँ होती हैं, क्योंकि इनके कुछ उपपादस्थान शीत हैं और कुछ उष्ण। तेजस्कायिक जीवों की उष्णयोनि होती है। इनसे अतिरिक्त जीवों की योनियाँ तीन प्रकार की होती हैं। किन्हीं की शीत योनियाँ होती है, किन्हीं की उष्णयोनियाँ होती है और किन्हीं की मिश्रयोनियाँ होती है। देव, नारकी और एकेन्द्रियों की संवृत योनियाँ होती हैं। विकलेन्द्रियों की विवृत योनियाँ होती हैं। तथा गर्भजों की मिश्र योनियाँ होती हैं। इन सब योनियों के चौरासी लाख भेद हैं यह बात आगम से जाननी चाहिए। कहा भी है- 'णिच्चिदरधादु सत्त य तरू वियलिदिएसु छच्चेव।
सरणिरयतिरिय चउरो चोइस मंणुए सदसहस्सा॥" नित्यनिगोद, इतरनिगोद, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों की सात-सात लाख योनियाँ हैं। वृक्षों की दस लाख योनियाँ हैं। विकलेन्द्रियों की मिलाकर छह लाख योनियाँ हैं। देव, नारकी और तिर्यंचों की चार-चार लाख योनियाँ है तथा मनुष्यों की चौदह लाख योनियों हैं।
गर्भ जन्म किसके होता है?
जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः। (33) Uterine birth is of 3 kinds. जरायुज Umbilical birth in a yolk, sack, flesh envelope, like a human child. अण्डज Incubatory. Birth from a shell like an egg.
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