Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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भौतिक है इसलिए शरीर की संरचना रसायनिक द्रव्य व परिवर्तन से संभव है परन्तु जीव (आत्मा) अभौतिक, अमूर्तिक, चैतन्य युक्त होने के कारण इसकी उत्पत्ति भौतिक द्रव्य से नहीं हो सकती।
शरीर के नाम व भेद औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि। (36) The bodies are of 5 kinds(1) औदरिक The physical. (2) वैक्रियक, Fluid (3) आहारक assimilative: (4) तैजस Electric. (5) कार्माण, Karmic
औदरिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्माण ये पाँच शरीर हैं। (1) औदारिक
पुरुमहदुदारूरालं, एयट्ठो संविजाण तम्हि भवं। ओरालियं
(230 गो. सा.जी.) पुरु. महत्, उदार, उराल, ये सब शब्द एक ही स्थूल अर्थ के वाचक हैं। उदार में जो होय उसको कहते हैं औदारिक। (2) वैक्रियकविविहगुणइङिजुत्तं, विक्किरियं वा हु होदि वेगुव्वं। (232)
नाना प्रकार के गुण और ऋद्धियों से, युक्तदेव तथा नारकियों के शरीर को वैक्रियिक अथवा विगूर्व कहते हैं। विक्रिया का अर्थ शरीर के स्वाभाविक आकार के सिवाय विभिन्न आकार बनाना है। देव और नारकियों के शरीर का निर्माण जिन वर्गणाओं से हुआ करता है उनमें यह योग्यता रहा करती है। अतएव उनको वैक्रियिक या वैगूर्विक वर्गणा कहते हैं। इनसे निष्पन्न शरीर को वैक्रियिक शरीर कहते हैं।
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