Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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शरीर के प्रदेशों का विचार
प्रदेशतोऽसंख्येय गुणं प्राक्तैजसात्। (38) From the Ist to the 3rd body i.e. up to the electric body each one has innumerable times the number of atoms which are in the one preceding it.
तैजस से पूर्व तीन शरीरों में आगे-आगे का शरीर प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा है। __ यहाँ पर प्रदेश का अर्थ परमाणु है। जिसका गुणाकार असंख्यात है वह असंख्य गुणा है। अर्थात् प्राकृत संख्या को असंख्यात में गुणा करना चाहिए। औदारिक शरीर अनन्तानन्त परमाणु से बनता है। यहाँ पर औदारिक शरीर के प्राकृत संख्यात (इकाई) है। औदारिक शरीर के परमाणु से वैक्रियिक शरीर के परमाणु असंख्यात-गुणित है और वैक्रियिक शरीर से आहारक शरीर के परमाणु असंख्यात् गुणित है। उत्तरोत्तर शरीर के परमाणु असंख्यात होते हुए भी बन्ध विशेष के कारण पूर्व-पूर्व शरीर से उत्तर-उत्तर शरीर सूक्ष्म है। जैसेसमप्रदेश वाले लोहा और रुई के पिण्ड में परमाणुओं के निविड़ और शिथिल संयोग की दृष्टि से अवगाहन क्षेत्र में तारतम्य है, उसी प्रकार वैक्रियिक आदि शरीरों में उत्तरोत्तर निविड़ संयोग होने से अल्पक्षेत्रता और सूक्ष्मता है। इसलिये उत्तर शरीर में असंख्येय गुणा प्रदेश होने पर भी बंध विशेष की अपेक्षा अल्पत्व जानना चाहिये।
शरीर के प्रदेशों का विचार
अनन्तगुणे परे। (39) Of the last two i.e. the electric and the karmic bodies, each one compared with the body immediately preceding it has an infinite-fold (number of atoms.) परवर्ती दो शरीर प्रदेशों की अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्तगुणे हैं।
आहारक से तैजस और तेजस से कार्मण क्रमश: अनन्तगुणे प्रदेश वाले हैं। प्रदेशत: इसका अनुवर्तन है इसलिये इसके साथ इस प्रकार सम्बन्ध किया
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