Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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अन्तिम शरीर उपभोग रहित हैं।
अन्तिम शरीर अर्थात् कार्मण शरीर उपभोग से रहित है। इन्द्रिय रूपी प्रणालियों के द्वारा शब्दादि के ग्रहण करने को उपभोग कहते हैं। यह बात अंत के शरीर में नहीं पायी जाती अतः वह निरूपभोग है । विग्रहगति में लब्धिरूप भावेन्द्रिय के रहते हुये भी वहाँ द्रव्येन्द्रिय की रचना न होने से शब्दादिक का उपयोग नहीं होता। यद्यपि विग्रह गति में कर्मादान, निर्जरा और सुखदुःखानुभव आदि उपयोग संभव है; भावेन्द्रिय की उपलब्धि भी है तथापि द्रव्येन्द्रिय की निवृत्ति का अभाव होने से शब्दादि विषयों के अनुभव का अभाव होने से कार्मण शरीर निरूपभोग है।
तैजस शरीर के योग निमित्तत्व का अभाव होने से उसका यहाँ अधिकार नहीं है। तैजस शरीर योगनिमित्त नहीं होता । अतः उसकी उपभोग विचार में विवक्षा नहीं है। इसलिये योगनिमित्त शरीरों में अन्त का कार्मण शरीर ही निरूपभोग है, शेष शरीर उपभोग सहित है।
औदारिक शरीर का लक्षण गर्भसंमूर्च्छनजमाद्यम्। (45)
The first (i.e. the physical body is produced along with the electric and the karmic bodies, in beings who are) born in the embryonic way or by spontaneous generation ( सम्मूर्च्छन)
पहला शरीर गर्भ और समूर्च्छन जन्म से पैदा होता है।
औदारिक शरीर की उत्पत्ति गर्भज और सम्मूर्च्छन जन्म से होती है।
वैक्रियक शरीर का वर्णन
औपपादिकं वैक्रियिकम् । (46)
The fiuid body is found along with the electric and the karmic bodies
in those who are barn by 3441 instontaneous rise.
वैक्रियिक शरीर उपपाद जन्म से पैदा होता है।
जितने औपपादिक जन्म वाले होते हैं उनके वैक्रियिक शरीर होता है जैसे
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