Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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दोनों शरीर से रहित संसारी जीव कभी भी नहीं हो सकते हैं। मुक्त जीव ही ये दोनों शरीर से रहित होते हैं। अन्य धर्म में एवं आधुनिक अतीन्द्रिय मनोविज्ञान में भी सूक्ष्म शरीर का वर्णन पाया जाता है परन्तु जैसे जैनधर्म में दार्शनिक, तार्किक, गणितिय प्रणाली में वर्णन पाया जाता है उसी प्रकार अन्यत्र नहीं पाया जाता है। कार्माण शरीर आठों कर्मों के समूह स्वरूप है। यह शरीर ही सम्पूर्ण सांसारिक गतिविधियों के लिए बीज स्वरूप है। एक साथ जीव के कितने शरीर हो सकते हैं ? .
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्थ्यः। (43)
Along with these, iwo i.e. the electric and the karmic bodies in their distribution at one and the same time, with one soul (there can be utmost up to 4 (i.e. these two and one or two more bodies) i,e, a soul can never have all the 5 bodies at once. एक साथ एक जीव के तैजस और कार्माण से लेकर चार शरीर तक विकल्प से होते हैं।
उपरोक्त सूत्रों से सिद्ध होता है कि, सम्पूर्ण संसारी जीव में तैजस और कार्माण होते ही हैं। इसलिए संसारी जीव में कम से कम शरीर होगें तो दो होगें ही।
किसी के तैजस, कार्मण और औदारिक या तैजस, कार्मण और वैक्रियिक ये तीन शरीर होते हैं, किसी के तैजस, कार्मण, औदारिक और आहारक ये चार शरीर होते हैं।
कार्माण शरीर की विशेषता
निरूपभोगमन्त्यम्। (44)
(The last body i.e. the karmic is can not be the means of enjoyment to the soul throught the senses and the mind, as the physical body can be. The karmic body bears no sound, sees, no sights etc.
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