Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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गमन किस प्रकार होता है
अनुश्रेणि गतिः। (26) In transmigration or passage from one incarnation to another the souls) movement (is always) in a straight line.
FUT A straignht line of spatial units from end to end) parallel with one of the 6 directions; East-West, North, South, up and down either way.
गति श्रेणी के अनुसार होती है। . लोक के मध्य से लेकर ऊपर नीचे और तिरछे क्रम से स्थित आकाशप्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं।
__ अनु शब्द 'आनुपूर्वी' अर्थ में समसित है। इसलिए 'अनुश्रेणी' का अर्थ 'श्रेणी की आनुपूर्वी से' होता है। इस प्रकार की गति जीव और पुद्गलों की होती है यह इसका भाव है। इस अनुश्श्रेणि गति में कालनियम और देशनियम जानना चाहिए। 1. कालनियम यथा - मरण के समय जब जीव एक भव को छोड़कर दूसरे भव के लिए गमन करते हैं और मुक्त जीव जब ऊर्ध्वगमन करते हैं तब उनकी गति अनुश्रेणि ही होती है। 2. देशनियम यथा - जब कोई जीव उर्ध्वलोक से अधोलोक के प्रति या अधोलोक से ऊर्ध्वलोक के प्रति आता जाता है। इसी प्रकार तिर्यग्लोक से अधोलोक के प्रति या ऊर्ध्वलोक के प्रति जाता है तब उस अवस्था में गति अनुश्रेणि ही होती है। इसी प्रकार पुद्गलों की जो लोक के अन्त को प्राप्त कराने वाली गति होती है वह अनुश्रेणि ही होती है। हाँ, इसके अतिरिक्त जो गति होती है वह अनुश्रेणि भी होती है और विश्रेणि भी। किसी एक प्रकार की होने का कोई नियम नहीं है।
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