Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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आत्मा के उन्हीं विशुद्ध प्रदेशों में इन्द्रियों के नाम से कहे जाने वाले भिन्न -2 आकारों के धारक संस्थान नामकर्म के उदय से होने वाले अवस्था विशेष से युक्त, जो पुद्गल पिण्ड हैं वह बाह्य निर्वृत्ति है अर्थात् उन भावेन्द्रिय आकार रूप से स्थित आत्म प्रदेशों में नामकर्म के उदय से शरीर योग्य पुद्गल प्रचयों की चक्षुरादि इन्द्रिय आकार रूप रचना होना बाह्य निर्वृत्ति है ।
जिसके द्वारा निवृत्ति का उपकार किया जाता है उसे उपकरण कहते हैं ।
वह उपकरण पूर्व के समान दो प्रकार का है। जैसे- बाह्याभ्यन्तर के भेद से निर्वृत्ति दो प्रकार की है, उसी प्रकार उपकरण भी बाह्याभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का है। आँख में सफेद और काला मण्डल आभ्यन्तर उपकरण है और पलक आदि बाह्य उपकरण है।
भाव इन्द्रिय का स्वरूप लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् । ( 18 )
Bhavendriyas subjective sense, sense faculties (are of 2 kinds ) - (1) लब्धि - It is the attainment of mainifestation of the sense faculty by the partial destruction subsidense and operation of the knowledgeobscuring karma relating to that sense.
(2) उपयोग The conscious attention of the soul directed to that sense. लब्धि और उपयोग रूप भावेन्द्रिय है।
लाभ को लब्धि कहते हैं अर्थात् इन्द्रियों की रचना में कारण भूत ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम विशेष को लब्धि कहते हैं। जिस ज्ञानावरण कर्म के विशेष क्षयोपशमरूप परिणाम के रहने पर आत्मा द्रव्येन्द्रिय की रचना के लिए व्यापार करता है, ज्ञानावरण कर्म के उस क्षयोपशम विशेष को लब्धि कहते हैं । तन्निमित्त परिणाम विशेष को उपयोग कहते हैं । ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम विशेषरूप लब्धि का निमित्त पाकर उत्पन्न आत्मा के परिणाम विशेष (ज्ञानादि व्यापार ) को उपयोग कहते हैं ।
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