Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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कृमि, पिपीलिका, भ्रमर और मनुष्य आदि के क्रम से एक-एक इन्द्रिय अधिक होती है। ____ इन्द्रियाँ एक-एक के क्रम से बढ़ी हैं इसलिए वे 'एकैकवृद्ध' कही गयी हैं। ये इन्द्रियाँ कृमि से लेकर बढ़ी हैं। यहाँ स्पर्शन इन्द्रिय का अधिकार है। स्पर्शन इन्द्रिय से लेकर एक-एक के होने से क्रम से बढ़ी हैं। इस प्रकार यहाँ सम्बन्ध कर लेना चाहिए। 'आदि' शब्द का प्रत्येक के साथ सम्बन्ध होता है। जिससे यह अर्थ हुआ कि क्रमि आदि जीवों के स्पर्शन, रसना ये दो इन्द्रियाँ होती हैं। पिपीलिका आदि जीवों के स्पर्शन, रसना, और घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ होती हैं। भ्रमर आदि जीवों के स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियाँ होती हैं। मनुष्यादिक के श्रोत्र इन्द्रिय के और मिला देने पर पाँच इन्द्रियाँ होती हैं। इस प्रकार उक्त जीव और इन्द्रिय इनका यथाक्रम से सम्बन्ध का व्याख्यान किया।
द्विइन्द्रिय जीव में स्पर्शन एवम् रसना इन्द्रिय सम्बन्धी सर्वघातिस्पर्धकों का क्षयोपशम रहता है एवम् इनके ही देशघाति स्पर्धों का उदय रहता है। इसी प्रकार आगे भी जान लेना चाहिए। कुंदकुंद देव ने पंचास्तिकाय में त्रस जीवों का वर्णन निम्न प्रकार से किया
संबुक्कमादवाहा संखा सिप्पी आपादगा य किमी।
जाणंति रसं फासं जे ते बेइंदिया जीवा॥(114) स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा शेष इन्द्रियों के आवरण का उदय तथा मन के आवरण का उदय होने से स्पर्श और रस को जानने वाले वह (शंबूक आदि) जीव मनरहित द्वीन्द्रिय जीव हैं। त्रीन्द्रिय जीव -
जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया विच्छयादिया कीडा।
जाणंति रसं फासं गंध तेइन्दिया जीवा॥ स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा शेष इन्द्रियों के आवरण का उदय तथा मन के आवरण का उदय होने से
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