Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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आद्य के दो ज्ञान अर्थात् मतिज्ञाने और श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण है। जो ज्ञान परावलम्बन से होता है एवं अस्पष्ट होता है उसे परोक्षज्ञान कहते हैं । मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान इन्द्रिय, मन एवं प्रकाश आदि के आवलम्बन से होता है एवं अस्पष्ट होता है इसलिए इसे परोक्षज्ञान कहते हैं। कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा भी है
जं परदो विण्णाणं तं तु परोक्खं त्ति भणिदमत्थेसु । (58)
पर के द्वारा होने वाला जो पदार्थ सम्बन्धी विज्ञान है वह तो परोक्ष इस नाम से कहा गया है।
परदव्वं ते अक्खा णेव सहावो त्ति अप्पणो भणिदा । अवलद्धं तेहि कथं पच्चक्खं अप्पणो होदि ॥ ( पवयणसारो, पृ.सं. 132 श्लोक न. 57 )
वे प्रसिद्ध पाँच इन्द्रियों को आत्मा की अर्थात् विशुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभावधारी आत्मा की स्वभाव रूप निश्चय से नहीं कही गई हैं क्योंकि, उनकी उत्पत्ति भिन्न पदार्थ से हुई है इसलिये वे परद्रव्य अर्थात् पुद्गल द्रव्यमयी हैं उन इन्द्रियों . के द्वारा जाना हुआ उन्हीं के विषय योग्य पदार्थ सो आत्मा के प्रत्यक्ष किस तरह हो सकता है ? अर्थात् किसी भी तरह नहीं हो सकता है। जैसे पाँचों इन्द्रियाँ आत्मा के स्वरूप नहीं हैं ऐसे ही नाना मनोरथों के करने में 'यह बात कहने योग्य है, मैं कहने वाला हूँ' इस तरह नाना विकल्पों के जाल को बनाने वाला जो मन है वह इन्द्रियज्ञान की तरह निश्चय से परोक्ष ही है ।
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The remaining three, i.e. अवधि visual, direct material knowledge, मन:पर्यय Mental, direct mental knowledge and केवल perfect knowledge are i.e. directly known by the soul itself, without
any external help.
प्रत्यक्ष प्रमाण के भेदप्रत्यक्षमन्यत् । ( 12 )
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