Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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5. क्षिप्र
- शीघ्रता से गमन करते हुए पदार्थ के ज्ञान को 'क्षिप्र कहते हैं। जैसे- शीघ्रता से दौड़ती हुई गाड़ी का ज्ञान या विशेष क्षयोपशम के कारण पदार्थों को शीघ्रता से जानने को भी क्षिप्रज्ञान कहते है। -मन्दता से गमन करते हए पदार्थों के ज्ञान को 'अक्षिप्र' कहते है। जैसे-धीरे-धीरे चलते हुए कछुआ का ज्ञान अथवा क्षयोपशम की मन्दता से पदार्थो का धीरे-धीरे ज्ञान होना भी अक्षिप्रज्ञान
6. अक्षिप्र
7. अनिःसृत - छिपे हुए पदार्थ के ज्ञान को 'अनिःसृत' कहते है। अथवा
एकदेश के ज्ञान से सर्व देश के ज्ञान को अनि:सृत कहते हैं। जैसे- बाहर निकली हाथी की सूड़ देखकर जल में डूबे
. पूरे हाथी का ज्ञान होना। 8. निःसृत - प्रगट पदार्थ के ज्ञान को निःसृत कहते हैं। जैसे- सामने स्पष्ट
दिखाई देने वाला हाथी का ज्ञान । 9. अनुक्त - बिना कहे हुए विषय को अभिप्राय से जान लेना अनुक्त
कहते हैं। जैसे- शरीर के हलन-चलन एवं हाव-भाव से व्यक्ति
के अभिप्राय का ज्ञान होना। 10. उक्त - वचनों के द्वारा प्रतिपादित विषयों का ज्ञान होना उक्त है।
जैसे- इधर आइए। 11. ध्रुव - स्थिर पदार्थ का ज्ञान होना ध्रुव हैं। जैसे- स्थिर पर्वत का
ज्ञान होना। 12. अध्रुव - अस्थिर पदार्थ का ज्ञान होना अध्रुव है। जैसे- बिजली का
ज्ञान।
अर्थस्य (17) The 288 refer to i.e. are of determinable sense objects (i.e.) thing that can be touched, tasted, smetll, seen, heard or perceived
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