Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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चिन्तित, अचिन्तित, अर्धचिन्तित इस तरह अनेक भेदों को प्राप्त दूसरे के मनोगत पदार्थ को अवधि की तरह विपुलमति प्रत्यक्ष रूप से जानता है।
दव्वं खेत्तं कालं, भाव पडिजीवलक्खियं रूबि। उजुविउलमदीं जाणदि, अवरवरंमज्झिमं च तहा॥(450)
द्रव्य-क्षेत्र-काल भाव में से किसी की भी अपेक्षा से जीव के द्वारा चिंतित रूपी (पुद्गल) द्रव्य को तथा उसके सम्बन्ध से जीवद्रव्य को भी ऋजुमति और विपुलमति जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट तीन-तीन प्रकार जानते हैं।
ऋजुमति और विपुलमति में अन्तर
विशुद्ध्यप्रतिपाताम्यां वद्धिशेषः। (24) Their difference (are as to) purity (and) infallibility. विशुद्धि और अप्रतिपात की अपेक्षा इन दोनों में अन्तर है।
ऋजुमति मन: पर्यय और विपुलमति मन: पर्यय ज्ञान ये दोनों मन: पर्ययमान के अन्तर भेद होते हुए भी इन दोनों में कुछ विशेष अन्तर पाया जाता है। विशुद्धि- मनः पर्यय ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने पर जो आत्मा में
___ निर्मलता आती है उसे विशुद्धि कहते हैं। प्रतिपात- गिरने का नाम प्रतिपात है। अप्रतिपात- नहीं गिरना अप्रतिपात है।
उपशान्त कषाय जीव का चारित्र मोहनीय के उदय से संयम शिखर टूट जाता है जिससे प्रतिपात होता है और क्षीणकषाय जीव के पतन का कारण न होने से प्रतिपात नहीं होता। इन दोनों की अपेक्षा ऋजुमति और विपुलमति में भेद है। 1. विशुद्धि- यथा ऋजुमति से विपुलमति द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की
अपेक्षा विशुद्धतर है। यहाँ तो कार्मण द्रव्य का अनन्तवाँ अन्तिम भाग सर्वार्वाधिज्ञान का विषय है उसके भी अनन्त भाग करने पर जो अन्तिम भाग प्राप्त होता है वह ऋजुमति का विषय है।
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