Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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वस्तुनोऽनन्तधर्मस्य
प्रमाणव्यज्जितात्मनः ।
एकदेशस्य नेता यः स नयोऽनेकधा मतः ॥ (37)
प्रमाण के द्वारा जिसका स्वरूप प्रकट है ऐसी अनन्तधर्मात्मक वस्तु के एक देश को जो जानता है वह नय है। नय अनेक प्रकार का माना गया
है।
संसार का प्रत्येक पदार्थ नित्य-अनित्य, एक अनेक, भेद अभेद आदि परस्पर विरोध अनेक धर्मों का भण्डार है ऐसा प्रमाण ज्ञान के द्वारा अनुभव में आता है। उन अनन्त धर्मों में से जो किसी एक धर्म को जानता है वह नय कहलाता है। इस नय के अनेक भेद हैं ।
नैगमनय का लक्षण
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(त.सा. पृ. 17 )
अर्थसंकल्पमात्रस्य प्रस्थौदनादिजस्तस्य
ग्राहको नैगमो नयः । विषयः परिकीर्तितः ।। (44)
जो नय पदार्थ के संकल्पमात्र को ग्रहण करता है वह 'नैगमनय' है। जैसे कोई मनुष्य जंगल को जा रहा था, उससे किसी ने पूछा कि जंगल किसलिये जा रहे हो ? उसने उत्तर दिया कि प्रस्थ लाने जा रहा हूँ। प्रस्थ एक परिमाण का नाम है। जंगल में प्रस्थ नहीं मिलता है । वहाँ से लकड़ी लाकर प्रस्थ बनाया जावेगा, परन्तु जंगल जाने वाला व्यक्ति उत्तर देता है कि प्रस्थ लाने के लिये जा रहा हूँ। यहाँ प्रस्थ के संकल्पमात्र को ग्रहण करने से नैगमनय का वह विषय माना गया है। दूसरा दृष्टान्त ओदन का है। कोई मनुष्य लकड़ी, पानी, अग्नि आदि एकत्रित कर रहा था। उससे किसी ने पूछा क्या कर रहे हो ? उत्तर दिया, ओदन अर्थात् भात बना रहा हूँ। यद्यपि उस समय वह भात नहीं बना रहा था, सिर्फ सामग्री एकत्रित कर रहा था तो भी भात का संकल्प होने से उसका वह उत्तर नैगमनय का विषय स्वीकृत किया गया है।
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