Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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संसारी जीवों के अन्य प्रकार से भेद
- संसारिणस्त्रसस्थावराः। (12) The mundane souls (are of 2 kinds from another point of view. त्रस Mobile many-sensed,i.e. having a body with more than one Sense. स्थावर Immobile, one sensed, i.e. having a only the sense of touch. तथा संसारी जीव त्रस और स्थावर के भेद से दो प्रकार के हैं। कर्म सहित जीवों को संसारी जीव कहते हैं। इस दृष्टि से समस्त संसारी जीव एक होते हुए भी विभिन्न कर्मों के कारण भेद-प्रभेद हो जाते हैं। इसके मुख्यत: दो भेद है- (1) त्रस जीव (2) स्थावर जीव।
स नाम कर्म के उदय से दो इन्द्रिय से लेकर अयोग केवली तक के जीव को त्रस कहते हैं।
स्थावर नाम कर्म के उदय से पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पति कायिक तक जीव को स्थावर जीव कहते हैं। अग्निकायिक, जलकायिक और वायुकायिक जीव गमन करते हुए पाये जाते हैं तो भी वे त्रस नहीं है। परन्तु उपचार से उनको कुछ शास्त्र में त्रस कहा गया है। संसारी जीवों का वर्णन द्रव्य संग्रह में निम्न प्रकार से किया गया है- पुढविजलतेयवाऊ वणप्फदी विविहथावरेइंदी।
विगतिगचदुपंचक्खा तसजीवा होति संखादी॥ (11) पृथिवी, जल, तेज, वायु और वनस्पति इन भेदों से नाना प्रकार के स्थावर जीव हैं और ये सब एक स्पर्शन इंद्रिय के ही धारक हैं तथा शंख आदिक दो, तीन, चार और पाँच इन्द्रियों के धारक त्रस जीव होते हैं। . . समणा अमणा णेया पंचिदिय णिम्मणा परे सव्वे।
बादरसुहमेइंदी सव्वे पज्जत्त इदरा य॥ (12) पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञी ऐसे दो प्रकार के जानने चाहिए और दो इन्द्रिय तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय ये सब मनरहित (असंज्ञी) है, एकेन्द्रिय बादर और सूक्ष्म
विगति
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