Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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पंचास्तिकाय में कुंदकुद देव ने इसका वर्णन सविस्तार से निम्न प्रकार किया
उवओगोखलु दुविहोणाणेण यदंसणेण संजुत्तो। जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणीहि॥
(40) (पृ.सं. 138) उपयोग वास्तव में दो प्रकार है ज्ञान और दर्शन से संयुक्त अर्थात् ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग। यह सर्वकाल इस जीव से एकरूप है जुदा नहीं है ऐसा जानो।
वत्थुणिमित्तं भावो, जादो जीवस्स दु उवयोग। जीव का जो भाव वस्तु को (ज्ञेय को) ग्रहण करने के लिये प्रवृत्त होता है उसको उपयोग कहते हैं। द्रव्यसंग्रह में नेमिचन्द्राचार्य ने कहा भी है"जीवो उवओगमओ" "जीवो" शुद्धनिश्चयनयेनादिमध्यान्तवर्जितस्वपरप्रकाशकाविनश्वरनिरूपाधिशुद्धचैतन्यलक्षणनिश्चयप्राणेन यद्यपि जीवति,तथाप्यशुद्धनयेनानादिकर्मबन्धवशादशुद्धद्रव्यभाव प्राणैर्जीवतीति जीवः।
यद्यपि यह जीव शुद्धनिश्चयनय से आदि मध्य और अंत से रहित निज और पर का प्रकाशक, उपाधि रहित और शुद्ध ऐसा जो चैतन्य (ज्ञान) रूप निश्चय प्राण है, उससे जीता है, तथापि अशुद्धनिश्चयनय से अनादि कर्मबन्धन
के वश से अशुद्ध जो द्रव्यप्राण और भाव प्राण है, उनसे जीता है इसलिये • जीव है।
उपयोग के भेद
स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः ।(७) (Attention is of) 2 kinds which is subdivided in to 8 and 4 kindsज्ञानोपयोग knowledge attention: दर्शनोपयोग Conation-attention: उपयोग Is a modification of Consiousness, which is an essential
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