Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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अध्याय 2
जीव के असाधारण भाव औपशमिकक्षायिको भावौ मिश्रश्चजीवस्य स्वतत्त्वमौदयिक पारिणामिको च। (1) The Souls own thatness, i.e. thought activity (is of five kinds.) (1) औपशमिक Subsidential, (2) क्षायिक Destructive, Purifind. (3) मिश्र Mixed. (4) औदयिक Operative. (5) पारिणामिक Natural. औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक और पारिणामिक ये जीव के स्वतत्त्व
इस शास्त्र का नाम मोक्षशास्त्र है। मोक्षशास्त्र होने के कारण इसमें मोक्ष का वर्णन है। वह वर्णन पहले अध्याय के प्रथम सूत्र में किया गया है। मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीनों के सम्यक् समवाय से बनता है। तत्त्वार्थ श्रद्धान से सम्यग्दर्शन होता है। तत्त्वार्थ श्रद्धान सहित उन तत्त्वों के परिज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं। सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान के लिए तत्त्वों का श्रद्धान एवं ज्ञान होना चाहिए इसलिए मोक्षशास्त्र में तत्त्वों का वर्णन किया गया है। सात तत्त्वों में पहला जीव तत्त्व है। इसलिए इस अध्याय में जीव तत्त्व के असाधारण भावों का वर्णन किया गया है। उपरोक्त सूत्र में वर्णित पाँचों भाव जीव को छोड़कर अन्य तत्त्व में न होने के कारण यह भाव जीव के असाधारण भाव है। 1. औपशमिक-नीचे स्थित कीचड़ के समान अनुद्भत स्ववीर्य की वृत्ति से कर्मों का उपशमन होना औपशमिक भाव है। जैसे- कतक फल या निर्मली के डालने से मैले पानी का मैल नीचे बैठ जाता है और जल निर्मल हो जाता है, उसी प्रकार परिणामों की विशुद्धि से कर्मों की शक्ति का अनुभूत रहना उपशम है।
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