Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
अवधिज्ञान का वर्णन
भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणाम्। (21) Birth-born visual knowledge (is in born) in celestial and hellish beings. भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव और नारकियों के होता हैं।
अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से अवधिज्ञान की उपलब्धि होती है। इसके 2 भेद है। (1) भवप्रत्यय (2) गुणप्रत्यय।
(1) भवप्रत्यय- भव को निमित्त करके जो अवधिज्ञान होता है उसे भव प्रत्यय अवधिज्ञान कहते हैं। भवप्रत्यय अवधिज्ञान में भी अवधिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है परन्तु यह भव को निमित्त प्राप्त करके होता है। जैसे-देव एवम् नारकियों के अवधिज्ञान।
(2) गुणप्रत्यय- गुण अर्थात् सम्यग्दर्शन, तपादि को गुण कहते हैं इन गुणों के निमित्त से अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो अवधिज्ञान होता है उसे गुणप्रत्यय अथवा क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान कहते है। गोम्मट्टसार जीवकाण्ड में सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य ने अवधिज्ञान का बहुत ही सुन्दर निम्न प्रकार वर्णन किया है
अवहीयदि त्ति ओही, सीमाणाणे त्ति वणियं समये। भवगुणपच्चयविहियं, जमोहिणाणे त्ति णं बेंति॥
(370) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से जिसके विषय की सीमा हो उसको ‘अवधिज्ञान' कहते हैं। इस ही लिये परमागम में इसको सीमाज्ञान कहा है। तथा इसके जिनेन्द्रदेव ने दो भेद कहे हैं, एक भव प्रत्यय दूसरा गुणप्रत्यय ।
भवपच्चइगो सुरणिरयाणं तित्थेवि सव्वअंगुत्थो।
गुणपच्चइगो णरतिरियाणं संखादिचिण्हभवो॥(371)
भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव नारकी तथा तीर्थंकरों के भी होता है और यह ज्ञान सम्पूर्ण अङ्ग से उत्पन्न होता है। गुणप्रत्यय अवधिज्ञान पर्याप्त मनुष्य
84
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org