Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के भी होता है। और यह ज्ञान शंखादि चिन्हों से होता है।
नाभि के ऊपर शंख, पद्म, वज्र, स्वस्तिक, कलश आदि जो शुभ चिन्ह होते हैं, उस जगह के आत्मप्रदेशों में होने वाले अवधिज्ञानावरण तथा विर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से गुणप्रत्यय अवधिज्ञान होता है । किन्तु भवप्रत्यय अवधि सम्पूर्ण आत्मप्रदेशों से होता है।
क्षयोपशम निमित्त अवधिज्ञान के भेद और स्वामी क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् । ( 22 )
(The other kind of visual or direct material knowledge is) of six kinds (and it) arises from the part destruction, part sub-sidence and part operation (of the Karmas which obscure visual or direct material knowledge) (This is acquired by the other i.e. by human and sub-human beings, who are passessed of mind.
क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान छह प्रकार का है। जो शेष अर्थात् तिर्यञ्चों और मनुष्यों के होता है।
नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने गोम्मटसार जीवकाण्ड में इसका सविस्तार सुन्दर वर्णन अग्र प्रकार किया है
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गुण प्रत्यय अवधिज्ञान के छह भेद है - I अनुगामी II अननुगामी II अवस्थित IV अनवस्थित V वर्धमान VI हीयमान ।
I. अनुगामी :- जो अवधिज्ञान अपने स्वामी जीव के साथ जाये उसको अनुगामी कहते है। इसके तीन भेद हैं- (1) क्षेत्रानुगामी ( 2 ) भवानुगामी (3) उभयानुगामी ।
(1) क्षेत्रानुगामी - जो दूसरे क्षेत्र में साथ जायें उसको क्षेत्रानुगामी कहते है । ( 2 ) भवानुगामी - जो दूसरे भव में साथ जाये उसको भवानुगामी कहते है । ( 3 ) उभयानुगामी - जो दूसरे क्षेत्र तथा भव में साथ जाये उसको उभयानुगामी
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