Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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सामान्य की अपेक्षा मन:पर्यय एक प्रकार का है और विशेष भेदों की अपेक्षा.दो प्रकार का है- एक ऋजुमति दूसरा विपुलगति। ऋजुमति के भी तीन भेद हैं- ऋजुमनोगतार्थ विषयक, ऋजुवचनगतार्थविषयक, ऋजुकायगतार्थविषयक। परकीयमनोगत होने पर भी जो सरलतया मन, वचन, काय के द्वारा किया गया हो ऐसे पदार्थ को विषय करने वाले ज्ञान को ऋजुमति ज्ञान कहते हैं। अतएव सरल मन, वचन, काय के द्वारा किये हुए पदार्थ को विषय करने की अपेक्षा ऋजुमति के पूर्वोक्त तीन भेद हैं।
विउलमदी वि य छद्धा, उजुगाणुजुवयकायचित्तगयं। अत्थं जाणदि जम्हा, सद्दत्थगया हु ताणत्था॥
(440) विपुलमति के छह भेद हैं- ऋजु, मन, वचन, काय के द्वारा किये गये परकीय मनोगत पदार्थों को विषय करने की अपेक्षा तीन भेद, और कुटिल मन, वचन, काय के द्वारा किये हुए परकीय मनोगत पदार्थों को विषय करने की अपेक्षा तीन भेद। ऋजुमति तथा विपुलमति मन:पर्यय के विषय शब्दगत तथा अर्थगत दोनों ही प्रकार के होते हैं।
. कोई आकर पूछे तो उसके मन की बात मनः पर्यय ज्ञानी जान सकता है। कदाचित् कोई न पूछे मौनपूर्वक स्थित हो तो भी उसके मनःस्थ विषय को वह जान सकता है।
तियकालविषयरूविं, चिंतियं वट्टमाणजीवेण। - उजुमदिणाणं जाणदि, भूदभविस्सं च विउलमदी।।(441)
वर्तमान जीव के द्वारा चिन्तयमान - वर्तमान में जिसका चितवन किया जा रहा है ऐसे त्रिकालविषयक रूपी पदार्थ को ऋजुमति मन: पर्ययज्ञान जानता है और विपुलमतिज्ञान भूत, भविष्यत् को भी जानता है।
___ जिसका भूतकाल में चिन्तवन किया हो अथवा जिसका भविष्य में चिंतवन किया जाएगा अथवा वर्तमान में जिसका चिन्तन हो रहा है, ऐसे तीनों ही प्रकार के पदार्थ को विपुल मति मन: पर्ययज्ञान जानता है।
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