Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
7. आत्मप्रवाद:- जिसमें आत्मा का अस्तित्व, नास्तित्व, नित्यत्व, अनित्यत्व, कतृत्व, भोक्तृत्व आदि धर्म और षट् जीवनिकाय के भेदों का युक्ति से निरूपण किया गया है - वह आत्मप्रवाद है।
8. कर्मप्रवादः- जिसमें कर्मों के बंध, उदय, उदीरणा, उपशम आदि दशाओं का तथा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट आदि स्थिती का तथा प्रदेशों के समूह का वर्णन किया जाता है वह कर्मप्रवाद है।
9. प्रत्याख्यान:- जिसमे व्रत, नियम, प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, तप, कल्प, उपसर्ग, आचार, आराधना, विशुद्धि का उपक्रम आदि व मुनियों के आचरण का कारण तथा परिमित, अपरिमित द्रव्य के प्रत्याख्यान आदि का वर्णन है उसे प्रत्याख्यान पूर्व कहते है।
10. विद्यानवाद:- जिसमे समस्त विद्याएँ, आठ महानिमित्त, उनका विषय, रज्जु राशिविधि, क्षेत्र, श्रेणी, लोक-प्रतिष्ठा, समुद्घात आदि का विवेचन है। अंगुष्ठप्रसेनादि 700 अल्पविद्याएँ और रोहिणी आदि 500 महाविद्याएँ होती हैं।
11. कल्याणवाद:- जिसमे सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र तारागणों का गमन क्षेत्र, उपपादक्षेत्र, शकुन आदि का वर्णन है तथा अर्हत्, बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती आदि का एवं गर्भ जन्म तप केवलज्ञान मोक्ष इन पंचकल्याणकों का वर्णन किया है वह कल्याणपूर्व कहलाता है।
__12. प्राणावाय:- कायचिकित्सा आदि आठ अंग, आयुर्वेद, भूतिकर्म, जांगुलिप्रकम प्राणायाम के विभाग का जिसमें विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाता है वह प्राणावाय नामक पूर्व है।
13. क्रियाविशाल:- लेखनक्रिया आदि पुरुषों की 72 कलाओं का, स्त्रियों की 64 कलाओं का तथा शिल्प, काव्यगुणदोष, छन्द, क्रिया, क्रिया का फल व उसके भोक्ता आदि का जिसमे विस्तारपूर्वक वर्णन है, वह क्रिया विशालपूर्व है।
"14. लोकबिन्दुसार:- आठ प्रकार का व्यव्हार, चार बीजराशि, परिकर्म आदि गणित तथा सारी श्रुत सम्पत्ति का जिसमें विवरण है। वह लोकबिन्दुसार है।
83
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org