Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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मुनिराज दारुण उपसर्ग पर विजय प्राप्त कर विजयादि अनुत्तरों में उत्पन्न हुए . हैं। उन अनुत्तरौपपादिकों की दशा का वर्णन जिसमें किया जाता है - उस अंग का नाम अनुत्तरौपपादिक दशांग है। अनुत्तरौपपादिकों की दशा अनुत्तरौपपादिक दशांग कहलाती है, इस अंग में विजय आदि अनुत्तर विमानों की आयु विक्रिया क्षेत्र आदि का वर्णन है।
10. प्रश्नव्याकरण:- प्रश्नव्याकरणांग में युक्ति और नयों के द्वारा अनेक आक्षेप विक्षेप रूप प्रश्नों का उत्तर है। तथा उसमें सभी लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है।
11. विपाकसूत्र :- विपाकसूत्र में पुण्य और पाप के विपाक (फल) का विचार (कथन) है।
____12. दृष्टिवाद:- इसमें 363 कुवादियों के मतों का निरुपण पूर्वक खंडन किया है। कौल्कल, काणेविद्धि, कौशिक, हरिस्मश्रु, मांछपिक, रोमश, हारित, मुण्ड, आश्वलायन आदि क्रियावादियों के 180 भेद हैं। मरीचिकुमार, कपिल, उलूक, गार्ग्य, व्याघ्रभूति, वाद्वलि, माठर, मौदगलायन आदि अक्रियावादियों के 84 भेद हैं। साकल्य, वल्कल, कुधुमि, सात्यमुग्र, नारायण, कठ, माध्यन्दिन, मौद, पैप्पलाद, बादरायण, अम्बष्ठि, कृदौविकायन, वसु, जैमिनी, आदि अज्ञानवादियों के 67 भेद हैं। वशिष्ठ, पाराशर, जतुकर्णि, वाल्मीकि, रोमहर्षिणी, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, ओपमन्यव, इन्द्रदत्त, अयस्थुण आदि वैनयिकों के 32 भेद हैं। इस प्रकार मिथ्यादृष्टियों के पुल 363 भेदं हैं। इन सब का वर्णन दृष्टिवाद में है। दृष्टिवाद के पाँच भेद हैं - परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका।
1. परिकर्म :- ‘परित' अर्थात् पूरी तरह से 'कर्माणि' अर्थात् गणित के करणसूत्र जिसमें हैं वह परिकर्म है। उसके भी पाँच भेद हैं - चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, व्याख्या प्रज्ञप्ति। उनमें से चन्द्रप्रज्ञप्ति, चन्द्रमा के विमान, आयु, परिवार, ऋद्धि, गमन, हानि, वृद्धि, पूर्णग्रहण, अर्धग्रहण, चतुर्थाशंग्रहण आदि का वर्णन करती है।
सूर्यप्रज्ञप्ति- सूर्य की आयु, मण्डल, परिवार, ऋद्धि, गमन का प्रमाण
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