Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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जाता है। जम्बूद्वीप, सर्वार्थसिद्धि, अप्रतिष्ठान नरक, नंदीश्वर द्वीप की वापिका ये सब एक लाख योजन विस्तार वाले होने से इनका क्षेत्र की दृष्टि से समवाय है। उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी ये दोनों दस कोड़ा कोडी सागर प्रमाण होने से इनका काल की दृष्टि से समवाय है।
क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन यथाख्यातचारित्र ये सब अनंत विशुद्ध रूप से भाव समवाय हैं।
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5. व्याख्याप्रज्ञप्ति :- व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग में 'जीव है कि नहीं' इत्यादि साठ हजार प्रश्नों का उत्तर है या निरूपण है।
6. ज्ञातृधर्मकंथाग :- ज्ञातृधर्मकथाग में अनेक आख्यान और उपाख्यानों ' का वर्णन है।
7. उपासकाध्ययनांग :- उपासकाध्ययनांग में श्रावक धर्म का विशेषरूप से विवेचन किया गया है।
8. अन्तकृद्दशांग :- संसार का अन्त जिन्होंने कर दिया है वे अन्तकृत् हैं- जैसे- वर्द्धमान तीर्थंकर के तीर्थं में नमि, मतंग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलीक, वलीक, निष्कम्बल, पाल और अम्बष्ठपुत्र ये दस मुनि घोर उपसर्ग सहन करके सम्पूर्ण कर्मों का नाश कर अन्तकृत् केवली हुए। उसी प्रकार ऋषभादि तेईस तीर्थंकरों के समय में दस-दस मुनि घोरोपसर्ग सहन करके अन्तकृत्केवली हुए हैं। उस दस-दस मुनियों का वर्णन जिसमें है उसको अन्तकृद्दशांग कहते हैं। अथवा अन्तः कृतों की दशा अन्तकृत्दशा उसमें अर्हव् आचार्य होने की विधि तथा सिद्ध होने वालों की अंतिम विधि का वर्णन है ।
9. अनुत्तरौपपादिकदशांग :- उपपाद जन्म ही है प्रयोजन जिसका वे औपपादिक हैं। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि नामक पाँच अनुत्तर हैं। उन अनुत्तरों मे उत्पन्न होने वालों को अनुत्तरौपपादिक कहते हैं। महावीर के समय में ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, नंद-नंदन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र ये दस मुनि घोर उपसर्ग सहन करके विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न हुए हैं।
इसी प्रकार ऋषभादि तेईस तीर्थंकरों के समय में अन्य अन्य दस-दस
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