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संख्या १]
नई पुस्तकें
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को इसका अवश्य संग्रह करना चाहिए । मूल्य और वह बड़े सोच में पड़ जाती है। रानी का पिता दया॥) है।
धाम से उसकी शादी करना चाहता है। यद्यपि उसे यह . उक्त पुस्तकें शास्त्र-प्रकाशन-विभाग, महामण्डल-भवन, स्वीकार नहीं था, पर इस समस्या के आ जाने से उसने जगतगंज, बनारस के पते पर मिलती हैं ।
पिता की बात स्वीकार कर ली और पिता-पुत्री साथ साथ . ५–मन्दिर-दीप-लेखक, श्रीयुत ऋषभचरण जैन, सिनेमा हाल में दयाधाम को यह सूचना देने जाते हैं । वहाँ प्रकाशक, साहित्य-मण्डल, बाज़ार सीताराम, दिल्ली, हैं। दयाधाम से तो नहीं, नागरदास और रानी से भेंट होती पृष्ठ-संख्या ३८० और मूल्य ३) है।
है। नागरदास की बातों से प्राकष्ट होकर रानी उसके लेखक ने अपने इस उपन्यास में भारतीय शिक्षित साथ उसके इच्छित स्थान पर जाती है। मार्ग में गाड़ी में युवक-युवतियों के आधुनिक जीवन पर प्रकाश डालने का नागरदास मिस रानी से अनुचित प्रस्ताव करता है जिससे प्रयत्न किया है। इसका कथानक रोचक और मनो- विवश होकर रानी ख़तरे की जंजीर खींचती है। अन्त में रंजक है।
नागरदास रानी को लेकर अपने घर जाता है और वहाँ _ जनककुमार, दयाधाम और नागरदास एक ही भी वह उससे वैसी ही अनुचित छेड़-छाड़ करता है, पर कालेज के विद्यार्थी हैं । उसी कालेज में मिस रानी और वह अपने प्रयत्न में सफल नहीं होता। अन्त में रानी को मिस रोज़ भी पढती हैं। मिस रोज़ एक पादरी की लड़की अपने घर में कैदी की हालत में रखता है। मिस रोज़ के है। मिस रानी एक प्रतिष्ठित घराने की हैं और उसका पिता को रोज़ और जनककुमार का पता लग जाता है और आचरण भी श्रेष्ठ है। दयाधाम और रानी के विवाह की वहाँ जाकर जनककुमार को पकड़वा कर जेल भेजवा देता चर्चा है और मिस रानी अपने को जनककुमार की सह- है। पर जब उसे रोज़ से जनककुमार के असाधारण धर्मिणी समझती है। दयाधाम के दिल पर रानी के इस व्यक्तित्व का पता लगता है तब वह अपना मुकद्दमा उठा मनोभाव का बुरा असर पड़ता है और वह जनककुमार लेता है। जनककुमार, दयाधाम और रानी के पिता के से शत्रुता रखने लगता है । एक दिन सुनसान जंगल में वह साथ रानी का पता लगाने जाता है और सब लोग रानी जनककुमार पर पिस्तौल से वार भी करता है, पर जनक- के कारागार का भीषण दृश्य और रानी की दृढ़ता देखते कुमार मृत्यु से बच जाता है, और उसके हाथ में घाव हो हैं । अन्त में नागरदास को पुलिस गिरफ्तार करना चाहती जाता है, जिसे वह किसी पर भी नहीं प्रकट करना चाहता। है, किन्तु वह स्वयं अपनी हत्या कर लेता है । रानी बन्धननागरदास रईस का लड़का है। इसका पढ़ने में दिल नहीं मुक्त होती है और सब लोग प्रसन्न होते हैं। लगता । यह केवल नवयुवतियों के आमोद-प्रमोद के लिए कथानक का वर्णन बहुत बढ़ाकर किया गया है, कालेज में पढ़ने जाता है। रोज़ से इसकी घनिष्ठता है। जिससे पुस्तक का आकार काफी बढ़ गया है। कथा रोचक मिस रानी के प्राचरण का अनुकरण करके रोज़ भी अपना और मनोरंजक है। पढ़ते समय आगे की घटना जानने सुधार करना चाहती है। उसकी जनककुमार से भी दोस्ती की उत्सुकता होती जाती है। किन्तु इसमें कुछ ऐसे भद्दे है । जनककुमार से रोज़ के विवाह की अफवाह नागरदास चित्र भी अंकित किये गये हैं, जो कथानक को समयानुकूल
आदि फैला देते हैं, पर वह झूठी सिद्ध होती है और बनाने की अपेक्षा उसे पीछे की ओर ले जाते हैं । जैसेउनकी काफ़ी बेइज्जती की जाती है। उसी रात को जनक- मिस रानी नागर के कुत्सित व्यवहार से रुष्ट होकर जंजीर कुमार रोज़ के यहाँ जाकर अपने बाहर जाने का प्रस्ताव खींचने में तो साहस का काम करती है, पर गार्ड के आने करता है । मिस रोज़ भी उसके साथ जाने का हठ करती पर वह नागरदास के इस कथन का कुछ भी विरोध नहीं है और इस शर्त पर दोनों निकल भागते हैं कि एक सच्चे करती कि "यह मेरी स्त्री है, इसका दिमाग़ ठीक नहीं है, लोकसेवक के रूप में अपना जीवन व्यतीत करेंगे । वे इसने भूल से यह काम किया, श्राप ५० रु० लीजिए और जाकर एक गाँव में छोटी कुटी बनाकर रहने लगते हैं। जाइए।" कदाचित् ही आज कोई ऐसी शिक्षित महिला
मिस रानी को इस समाचार से विशेष ग्लानि होती है होगी जो अनिच्छा और क्रोध की दशा में अपनी बात
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