________________
५५४
सरस्वती
[ भाग ३
रेज़ और फ्रांसीसियों की प्रकृति में अन्तर है । अँगरेज़ बिना परिचय कराये कठिनाई से किसी से मिलना-जुलना पसन्द करेंगे। मेरे पास समय तो नहीं था, फिर भी जो २.४ मिनट बातें हुई वे बड़ी कौतुक-पूर्ण थीं। उन्होंने भारतीयों के प्रति अपना विशेष प्रेम बतलाया, जिसके लिए मैंने उन्हें धन्यवाद दिया। बातचीत के सिलसिले में मालूम हुआ कि गत महायुद्ध में उनका भारतीय सैनिकों के साथ सम्बन्ध हो गया था। उन्होंने दो वस्तुओं की प्रशंसा की ; एक तो भारतीयों की पगड़ी की और दूसरे
चपाती या रोटी की । उनकी दृष्टि में सर्द मुल्क के लिए हावर के समुद्र-तट पर जल और धूप-स्नान का स्थान ।] पगडी लाभदायक है । मालूम होता है, किसी सिक्ख सिपाही
ने इन्हें अपनी मीठी रोटी से खूब प्रसन्न किया था, जिससे सिनेमा प्रेमी कदाचित् ही कोई देश हो। अमरीका में वे अब तक उसका स्वाद भूल नहीं सके थे। इस दिशा में बड़ी उन्नति हुई है। वहाँ करोड़ों रुपये इन्हीं समय अधिक हो चुका था। टैक्सीवाले का जहाज़ की व्यवसायों में लगे हुए हैं, पर फ्रांसीसियों के रक्त में थियेटर अोर बढ़ने का आदेश दिया। इतने में हमारी पार्टी
और नृत्य का प्रेम भिना है। ला हावर में भी इसी प्रकार के एक सज्जन ने 'नारमण्डी' के टिकने के स्थान को का एक थियेटर है, जिसके साथ सुन्दर बाग़ लगा हुआ देखने की इच्छा प्रकट की। ड्राइवर से कहा गया कि है। सारे नगर में यह सबसे उत्तम थियेटर माना वह उसी ओर ले चले। जहाँ हमारा जहाज़ रुका था जाता है। थियेटर का भवन तीन मंज़िला है। इसमें वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर नारमण्डी के टिकने का स्थान सुरापान का भी प्रबन्ध है। उसके लिए भी स्थान था। थोड़ी देर में हम लोग वहाँ पहुँच गये। जिस बने हुए हैं। यह थियेटर अधिक रात्रि तक लोगों का समय हम लोग वहाँ पहुँचे, दुर्भाग्यवश नारमंडी
आमोद-प्रमोद करता है। दिन में तो वाटिका का ही अानन्द न्यूयार्क के लिए प्रस्थान कर चुका था। पर उसी स्थान लेने लोग आते हैं।
पर फ्रांस का दूसरे नम्बर का जहाज़ 'इल दे फ्रांस' था। ___ हावर का 'पेरिस-म्यूज़ियम' भी देखने योग्य है। यह लगभग ५५-५६ हज़ार टन का जहाज़ है। फ्रांस के मध्यकालीन फ्रांस की चित्रकारी और उद्योग धन्धों का यहाँ दूसरे नम्बर के बन्दरगाह पर दूसरे नम्बर का जहाज़ देखने अच्छा संग्रह है। साहित्यिकों के भी संस्मरण आदि हैं, का सौभाग्य हुा । अपने जीवन में 'इल दे फ्रांस' से बड़ा जो समय देने पर देखे जा सकते हैं। सच बात यह जहाज़ और दूसरा कोई नहीं देखा था। इसकी उँचाई है कि इन अजायबघरों के देखने के लिए विशेष समय' सौ फुट से अधिक थी। हज़ारों यात्रियों के लिए चाहिए। जहाज़ के यात्रियों के लिए परिमित समय में स्थान था। सब वस्तुओं का गौर से देखना कठिन है। फिर भी संग्रह के अब तक हावर के सम्बन्ध में एक बात नहीं बतला बहिरङ्ग को ही देखकर म्यूज़ियम की उत्तमता का अन्दाज़ा सका। वह है इसके समुद्रतट पर धूप और, जल-स्नान का लगाया जा सकता है।
प्रबन्ध । तट पर कई विशाल भवन बने हुए हैं, जहाँ सुख थियेटर के पास एक फ्रेंच सज्जन को अपनी ओर की सामग्रियाँ जुटी रहती हैं। इन्हीं भवनों के नीचे छोटेउत्सुकता-पूर्ण दृष्टि फेंकते हुए देखकर मैं कुछ क्षण के लिए छोटे कमरे बने होते हैं, जिनमें लोग अपने कपड़ों को बदलते रुक गया। वे भी आगे बढ़े और अँगरेज़ी में अभिवादन हैं। समुद्र का जल स्वभावतः ऐसे स्थानों पर छिछला के शब्दों का बोलते हुए उन्होंने हाथ बढ़ाया। ये सज्जन होता है। इसलिए लोगों को स्नान करने में भय नहीं बड़े बेतकल्लुफ़ और मिलनसार-से जान पड़े। यही अँग- मालूम होता। किनारे पर दूर तक बालुकामय भूमि होती
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com