Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 623
________________ हा वाधार वाया link कहते हैं, कवि अपने समय का गायक होता है, वह मैं एक दया का पात्र अरे! निर्जीवों में जान डालता है, सोतों को जगाता है और मैं नहीं रञ्च स्वाधीन प्रिये ! जाति को जीवन-युद्ध के लिए तैयार करता है। अच्छी . x कविता से चित्त में उत्साह, हृदय में अानन्द और मन में एक नवयुवक भारतीय की लेखनी से ऐसी निराशाशान्ति पैदा होती है। मैं जब कोई कविता पढ़ता हूँ तब पूर्ण पंक्तियाँ निकल सकती हैं, यह मैंने पहले नहीं सोचा मेरे सामने यह दृष्टिकोण बराबर रहता है। था। मैंने 'विशाल भारत' जहाँ का तहाँ रख दिया और x x माधुरी' उठाई। देखा, पहले पृष्ठ पर श्री कुँवर चन्द्रउस दिन एक पुस्तकालय में मुझे बड़ी देर तक एक प्रकाशसिंह जी रो रहे हैं- ... . मित्र की प्रतीक्षा में बैठना पड़ा। चित्त अशान्त और जीवन का प्रतिचरण मरण रे! उदास था, इसलिए सोचा कि हिन्दी की कुछ ताज़ी कवि- इतना सुन्दर नाम और इतनी निराशापूर्ण कविता । तायें पढ़कर अपने हृदय को आनन्द और उल्लास से मैंने इस कविता को आगे पढ़ना मुनासिब नहीं समझा। क्यों न भरूँ। मेज़ पर गत मास की प्रायः सभी मासिक पत्रिकायें पड़ी थीं। मैंने उन्हें एक एक करके उठाया और मेरी दृष्टि :सरस्वती' के ही समान अाकर्षक 'विश्वमित्र' प्रत्येक पत्रिका की प्रथम पृष्ठ पर छपी कविता पढ़ गया। पर गई । उसके प्रथम पृष्ठ पर श्री भगवतीप्रसाद वाजपेयी परन्तु पढ़ने के बाद मुझे घोर निराशा हुई। की 'पनघट पर' शीर्षक कविता अङ्कित है। शीर्षक देखकर . x x x मैंने सोचा इस कविता में अवश्य जीवन और उत्साह आज-कल 'सरस्वती' की बड़ी धूम है। सबसे पहले होगा । पर उसमें निम्न पंक्तियाँ पढ़कर मेरा हृदय मैंने यही पत्रिका उठाई। प्रथम पृष्ठ पर ठाकर गोपाल- बैठ गया- . शरणसिंह की कविता छपी है। उसकी अन्तिम पंक्तियाँ ___ मैं दैन्य दुर्दशा की तड़पन, इस प्रकार हैं मैं दुर्बलता का नाश-काल ॥ .. अन्धकारमय ही भविष्य का चित्र नज़र आता है। • धीरे धीरे भाग्य-विभाकर अस्त हुअा जाता है। मुझे अपना दुःख भूल गया और मैं सोचने लगा कि — मैंने 'सरस्वती' बन्द कर दी। भारतीयों का भविष्य हिन्दी के कवियों में यह दीनता, निराशा और बन्धन का अन्धकारमय नहीं है। उनमें जागृति है। फिर ठाकुर इतना भाव क्यों है ? और यदि इन्हें समय और राष्ट्र साहब यह किसका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं ? का प्रतिनिधि कहें तो क्या यह राष्ट्र और समय का स्वर है ? खैर, मैंने 'सरस्वती' बन्द कर दी और 'विशाल भारत' x उठाया। इस पत्रिका में पहले पृष्ठ पर कोई कविता न कुछ पत्रिकायें और पड़ी थीं। उन्हें खोलने की इच्छा पाकर मैंने कुछ पृष्ठ और उलटे। पहली कविता श्री ऊपर के अनुभवों से दब चुकी थी। पर मैं इन कवियों भगवतीचरण वर्मा की है । वर्मा जी नवयुवक और उत्साही. जैसा निराश नहीं। इसलिए मैंने एक और पत्रिका हैं । फिर भी आप लिखते हैं- उठाई । यह 'सुधा' थी। इसके प्रथम पृष्ठ पर छपी कविता . . . ६०७ x Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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