Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 639
________________ संख्या ६] सम्पादकीय नोट ६२३ में या तो खुद भी नहीं कराते हैं या उन्हें स्कूल ही बसोरा-घाटी में हो रहा है। विरोधी कबीलांवालों में सुलभ नहीं हैं। और जब लड़कों का यह हाल है तब तोरीखेल के लोग मुख्य हैं। इनका नेता इपी नाम के लड़कियों के सम्बन्ध में क्या कहा जाय ? उनका औसत स्थान का एक युवा फकीर है । यह तोरीखेल-जाति का है, १६.५ फी सदी ही है। रिपोर्ट में यह भी लिखा गया जिस पर उसका पूरा प्रभाव है । यह अंगरेज़-सरकार के है कि चौथे दर्जे तक शिक्षा पा जाने पर ही कोई लड़का विरुद्ध स्वतन्त्र कबीलों में बहुत पहले से प्रचार करता था या लड़की साक्षर कहलाने का अधिकारी हो सकता है। रहा है । वज़ीरी, महसूद, मद्दाखेल अादि अन्य कबीलों परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि प्रारम्भिक शिक्षा में चौथे पर भी इसका काफी प्रभाव है। परन्तु सरकार की सौम्य दर्जे तक केवल २६ फ़ी सदी ही लड़के पहुँच पाते हैं। नीति के कारण ये कबीलेवाले फ़कीर के कहने में नहीं अर्थात् ५० फी सदी लड़कों में भी २४ फी सदी लड़के आये और शान्त बने रहे । यह फ़क़ीर इस समय चौथे दर्जे तक नहीं पहुँच पाते और बीच में ही पढ़ना खेसारा और शाकातू की घाटियों के बीच में एक कन्दरा छोड़ बैठते हैं। ऐसा मालूम पड़ता है कि लड़के पहले में रहता है। इसकी उम्र ४२ वर्ष है। यह बन्नू से कोई या दूसरे दर्जे से ही स्कूल जाना छोड़ देते हैं। ऐसी दशा १२ मील पर स्थित इपी गाँव का निवासी है। बन्नू से में साक्षर लड़कों का औसत भारत में कुल २६ फी सदी मिलानी को जो सड़क गई है वह इपी होकर गई है। ही है। इसी तरह स्कूल जा सकनेवालो लड़कियों में कहते हैं कि किसी समय यह सरकार के मेकैनिकल इंजीनिय१०० में केवल १३ लड़कियाँ चौथे दर्जे तक पहुँच पाती रिंग डिपार्टमेंट में मेट था। कंट्रेक्टर से न पटने पर इसने हैं। इससे प्रकट होता है कि स्कूल जा सकनेवाली लड़- काम छोड़कर साधु का बाना धारण कर लिया और अपने कियों में साक्षर लड़कियों की कितनी कम संख्या है। तप के प्रभाव से कोई दस-बारह वर्ष के भीतर इसने यह अवस्था वास्तव में खेदजनक है। स्कूल में जाकर स्वतन्त्र कबीलों पर अपनी ऐसी सत्ता स्थापित कर ली है लड़कों का बीच में ही पढ़ना छोड़ बैठना शिक्षा-प्रचार कि अाज हज़ारों आदमी उसके कहने से जान देने को के मार्ग में एक बड़ा विघ्न है और जो अब स्थायी व्याधि तयार हैं । वह अपनी कन्दरा से बहुत कम बाहर आता है, का रूप धारण कर गया है। इसके प्रतीकार का समुचित अपनी ध्यान-धारणा में ही लगा रहता है। उसकी कन्दरा पर होना चाहिए और उपाय एकमात्र यही है कि के द्वार पर पहरा रहता है । पहरेदारों की अनुभति के भारम्भिक शिक्षा बालकों और बालिकाओं दोनों की सारे बिना कोई भी अादमी फ़कीर से मिल नहीं सकता है। देश में अनिवार्य कर दी जाय । परन्तु वर्तमान आर्थिक इस बीच में फ़क़ीर को एक बहाना मिल गया । अस्तु बन्नू संकट-काल में यह सम्भव नहीं है, तो भी यह ज़रूर सम्भव में एक हिन्दू लड़की मुसलमान बना ली गई । इस पर वहाँ है कि शिक्षा-विभाग इस बात का समुचित प्रयत्न करे कि के हिन्दू बहुत असन्तुष्ट हो गये। यह देखकर सरकार ने स्कूल में जानेवाले लड़के सेंट पर सेंट चौथे दर्जे तक ज़रूर उस लड़की को हिरासत में लेकर उसके मा-बाप को सौंप पढ़े। अधिकारियों को व्यावहारिक प्रयत्नों की खोज करनी दिया। कहा जाता है कि बन्नू के मुसलमानों ने सरकार के चाहिए, जिसमें प्रारम्भिक शिक्षा पर खर्च होनेवाली इस व्यवहार की इपी के फ़कीर से फ़रियाद की। फकीर रकम सार्थक हो। यह सच है कि अधिकांश माता- मौके की खोज में था ही। इस बात के बहाने उसने लूटपिता शिक्षा के प्रति उपेक्षा भाव रखने या अपनी गरीबी मार करने का आदेश अपने अनुयायियों को दे दिया, के कारण अपने बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा भी नहीं देते। जिसके फल-स्वरूप सरकारी इलाके के कई गाँव व बाज़ार इस जानकारी से भी समुचित लाभ उठाना चाहिए। अब तक लूटे जा चुके हैं। इन हमलों में निरस्त्र प्रजा के धन की ही नहीं, जन की भी हानि हुई है। यही नहीं, सीमा-प्रान्त का उपद्रव अाक्रमणकारी कुछ प्रजाजनों को अपने साथ पकड़ भी सीमा-प्रान्त में इस समय सरकार से स्वतन्त्र क़बीले- ले गये हैं । इनकी संख्या २६ पहुंच गई है। इस लूट-मार सालों से युद्ध-सा हो रहा है। यह संघर्ष वजीरिस्तान की के काल में जब दो अँगरेज़ अफ़सर भी मारे गये और Shr u tarmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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