Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 633
________________ संख्या ६ ] १७८० में ५००० और १८२० से १८३० के बीच १६,००० पेटियाँ वार्षिक के हिसाब से अफ़ीम इस अभागे देश में खप गई । सन् १८३६ में सम्राट् टाऊ क्वाना के "मंत्री ने उनसे इस बात की शिकायत की कि अँगरेज़ व्यापारियों का उद्देश चीनियों को अफ़ीम खिला खिला कर कमज़ोर बना है। कुछ समय बाद सम्राट के पुत्र की अधिक अफीम खाने के कारण मृत्यु भी हो गई । तब सम्राट ने ग्राशा निकाली कि चीन के किसी भी बन्दरगाह पर 'जंगली लोग' उतरने न पावें। एक दूसरी श्राज्ञा में कहा गया 'कितने ही जहाजों में छिपा कर अफीम की १०-१० हज़ार पेटियां लाई जा चुकी हैं। इस तरह की जितनी भी अफ़ीम मिले, सरकारी ख़ज़ाने में जमा कर दी • जाय ताकि वह नष्ट की जा और देश इस व्याधि से मुक्त किया जा सके। इस बात का वचन लिया जाय कि वे क्रीम न लावेंगे ।' सके विदेशियों से कभी इस देश में सामयिक साहित्य इस तरह ईस्ट इंडिया कम्पनी को अफीम की २०,२८३ पेटियों से हाथ धोना पड़ा । २ लाख पाउन्ड की यह अफ़ीम सम्राट् की आज्ञा से जला दी गई । परन्तु चीन की आपत्तियों का फिर भी अन्त न हुग्रा । १८३९ में इंग्लैंड के दो जंगी जहाजों का मुकाबिला चीन के समस्त जंगी बेड़े से हुआ, जिसमें १६ छोटे जहाज़ थे । एक घंटे के अन्दर चीनी जहाज़ों में से कुछ डुबा दिये गये, कुछ भाग गये और केन्टन का बन्दरगाह चारों तरफ़ से घेर लिया गया। इसके सिवा अन्य बन्दरगाहों पर भी ब्रिटिश जहाज़ों ने गोलाबारी की, यहाँ तक कि १८४२ तक चीन की सभी तरफ़ हार ही हार होती दिखाई पड़ने लगी । आखिर सम्राट् को सन्धि करनी पड़ी। इस सन्धि के अनुसार अँगरेज़ों को व्यापार के लिए हाँगकाँग दिया गया। केन्टन, एमोय, क्रूचू, निंगपो और शांघाई में अँगरेज़ों का रहने का अधिकार दिया गया और उनके जान-माल की ज़िम्मेदारी ली गई । सम्राट् ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६१७ कम्पनी से छीनी हुई अफीम का दाम तथा युद्ध के ख़र्च की पूर्ति भी करने का वचन दिया। इस तरह चीन अफीम के कारण विदेशियों के चंगुल में फँसा । चीन की वर्तमान सरकार का अनुमान है कि वह सन् १९४० तक देश से अफीम की आदत छुड़ाने में सफल हो जायगी । गुरुकुल के नव-स्नातकों को खान अब्दुल गफ्फार खाँ का आशीर्वाद इस वर्ष गुरुकुल- काङ्गड़ी के वार्षिक महोत्सव के अवसर पर खान अब्दुल गफ्फार खाँ भी उपस्थित थे । आपने नव- स्नातकों को आशीर्वाद देते हुए कहा यहाँ आते हुए मैंने महात्मा जी को भी आप लोगों की तरफ़ से निमंत्रण दिया था, मगर वे न आ सके। उन्हों निम्न सन्देश श्राप लोगों के लिए भेजा है— " गुरुकुल और ऐसे ही दूसरे मदरसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के गढ़ होने चाहिए ।" मेरा भी आप लोगों को यही सन्देश है। स्टेशनों पर 'हिन्दू चाय ' ' हिन्दू पानी' तथा 'मुस्लिम चाय' मुस्लिम पानी' की आवाज़ को सुनकर मुझे बड़ा दुःख होता है । इसी लिए तो दूसरे मुल्कों के लोग हम पर हँसते हैं । हिन्दू-मुस्लिम एकता केवल बातें बनाने से न होगी । हमारे देश के युवकों को कुछ करके दिखाना चाहिए | मैं अपने तजु की बिना पर कह सकता हूँ कि खुदाई ख़िदमतगारों ने सीमान्त के हिन्दू-मुसलमानों में भाई-भाई की भावना को पैदा करने में बहुत कुछ किया है । इसमें आनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी धर्म और जाति का भेद किये मानव जाति की सेवा की शपथ लेनी होती है। नव-स्नातको ! मैं तुमसे आशा करता हूँ कि तुम लोग ख़ुदाई खिदमतगार बनोगे और हिन्दू-मुसलमानों में एकता स्थापित करोगे । www.umaragyanbhandar.com

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