Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 636
________________ सरस्वती . थोड़े ही दिनों के बाद इन दोनों की सगाई की घोषणा हो गई। कुछ सप्ताहों के बाद ड्यूक ग्राफ़ यार्क आपको साथ लेकर सैंडिघम महल में अपने माता-पिता के पास आये । अन्त में उसी वर्ष २६ अप्रैल को वेस्ट - मिन्स्टर एबी में बड़ी शान शौकत के साथ ग्राप दोनों का विवाह हुआ । विवाह के बाद सन् १९२४ में ड्यूक ग्राफ़ यार्क अपनी पत्नी को साथ लेकर अफ्रीका की लम्बी यात्रा करने गये । इस यात्रा श्राप केनिया, युगेन्डा, नील नदी के तट के प्रदेश और खारत्म यादि में घूमते हुए पोर्टसूडान से वापस आये। हर जगह आप लोगों का खूब स्वागत हुआ। आप लोग २० अप्रैल १९२५ को लन्दन वापस आगये । सन् १९२६ के अप्रैल मास में डचैस ग्राफ़ यार्क ने अपने पिता के बटन स्ट्रीट के लन्दनवाले मकान में प्रिंसेस लीजवे को जन्म दिया। इसके बाद से श्राप लोग लन्दन के मोहल्ले में अपने अलग मकान में रहने लगे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [सम्राट् और सम्राज्ञी अपनी दोनों पुत्रियों के साथ ] [ भांग ३८. इसी बीच आप लोगों ने आस्ट्रेलिया की यात्रा की । वहाँ नये गवर्नमेंटहाउस का उद्घाटन करना था। आस्ट्रेलिया के लिए आप दोनों 'रिनाउन' जहाज़द्वारा सन् १९२७ में रवाना हुए। पहले श्राप लोगों ने न्यूज़ीलैंड की यात्रा की । वहाँ से रवाना होकर श्राप सिडनी - बन्दरगाह पहुँचे । सिडनी से ग्राप लोग कीन्सलैंड और फिर टस्मा - निया गये । आस्ट्रेलिया की यात्रा के बाद आप लोग जब स्वदेश वापस ग्राये तब सम्राट् और सम्राज्ञी स्वयं आप लोगों के स्वागत के लिए विक्टोरिया स्टेशन पर पहुँचे । इस अतिरिक्त ब्रिटेन की जनता भी भारी तादाद में श्राप ले.. के स्वागत के लिए उपस्थित थी। रेलवे स्टेशन से लोग सीधे बकिंघम पैलेस गये, जहाँ प्रिंसेस एलीज़ बथ अपनी माता से मिलने के लिए उनकी उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रही थी। इस यात्रा के सकुशल समाप्त होने पर लन्दनवासियों की ओर से गिल्डहाल में आप लोगों को सार्वजनिक रूप से बधाई दी गई। धन इस प्रकार आपने अपने साम्राज्य का भी काफ़ी परिचय प्राप्त किया है। इससे आप अपने वर्तमान परमोच्च पद का भार वहन करने में पूर्णरूप से सफल -मनो-. रथ होंगे । इस शुभ अवसर पर हमारी यह मंगल कामना है कि सम्राट दीर्घजीवी हों और ग्रापके शासनकाल में ब्रिटिश साम्राज्य और भी अधिक गौरव प्राप्त करे । www.umaragyanbhandar.com

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