Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 598
________________ ५८२ I मार्च १९३७ को वाइसराय की कार्यकारिणी कौंसिल के सदस्य सर फ़ेंक नायस ने इसका उद्घाटन किया था ।. इस इंस्टिट्यूट में शकर - विज्ञान की सब प्रकार की शिक्षा का प्रबन्ध है । शिक्षण कार्य के साथ ही साथ यह संस्था शकर-व्यवसाय- सम्बन्धी अन्वेषण कार्य भी करती है। शकर - व्यवसाय को उन्नत बनाने के लिए यथासम्भव सब प्रकार की वैज्ञानिक सहायता देने का भी समुचित प्रबन्ध है । इम्पीरियल कौंसिल आफ एग्रिकल चरल रिसर्च के शकर - विज्ञान के विशेषज्ञ श्री आर० सी० श्रीवास्तव जो अब तक हारकोर्ट बटलर टेकनोलाजिकल इंस्टिट्यूट के शकर - विभाग के भी अध्यक्ष थे, इस नवीन सस्था के डाइरेक्टर नियुक्त किये गये हैं । इस नवीन संस्था में शिक्षण कार्य के लिए आगामी जुलाई मास से तीन कोर्स नियत किये गये हैं, शुगरइंजीनियर, शुगर - केमिस्ट और शुगर ब्वायलर । ये तीनों कोर्स तीन तीन वर्ष के होंगे। तीनों में १२-१२ विद्यार्थी भर्ती किये जायँगे। शुगर इंजीनियर शकर - मिलों के इंजीनियर का काम करेंगे । इस कोर्स की शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों का इंजीनियरिंग में बी० एस-सी० पास होना आवश्यक होगा । केमिस्ट कोर्स के लिए साधा रण विज्ञान के बी० एस-सी० लिये जायँगे। पैन ब्वायलर कोर्स जो अब तक केवल साल भर का था, बढ़ाकर तीन वर्ष का कर दिया जायगा। अब तक इस कोर्स के लिए इन्ट्रेंस पास विद्यार्थी लिये जाया करते थे, अब विज्ञान लेकर इन्टरमीडिएट पास करनेवाले विद्यार्थी लिये जायँगे । दाखिले के लिए इम्पीरियल कौंसिल आफ एग्रिकलचरल रिसर्च को लिखना होगा। इन तीन वर्षों में प्रथम वर्ष तो इंस्टिट्यूट में पढ़ाई में लगेगा और बाकी दो वर्ष शकर के कारख़ाने में काम करना होगा । इस तरह तीन वर्ष बिताने के बाद सार्टिफिकेट प्रदान किया जायगा । टेकने | लाजिकल इंस्टिट्यूट में अब केवल तेल-विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। इस विभाग के कोर्स में भारतीय तेलहनों और उनसे तैयार होनेवाले समस्त तेलों का पूर्ण वैज्ञानिक ज्ञान, उनसे नवीनतम आधुनिक रीति से तेल तैयार करने एवं उन्हें शुद्धि करने की विभिन्न रीतियाँ, तेल-विज्ञान से सम्बन्ध रखनेवाले साबुन, रंग-रोगन आदि विज्ञानों की भी शिक्षा शामिल है। सैद्धान्तिक एवं व्याव सरस्वती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ हारिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा देने का यहाँ प्रबन्ध है । वास्तव में तेल - विज्ञान की इतनी पूरी शिक्षा देने का आयोजन भारत में इस संस्था के अतिरिक्त और कहीं नहीं है । इस इंस्टिट्यूट को भी कृषि अनुसन्धान-समिति से आर्थिक सहायता मिलती है। इस सहायता के बदले में इंस्टिट्यूट में कृषि अनुसन्धान-समिति की सिफ़ारिश से युक्तप्रांत के अलावा दूसरे प्रान्तों के पाँच विद्यार्थी दाख़िल किये जाते हैं। इनके अतिरिक्त पाँच विद्यार्थी युक्तप्रान्त के लिये जाते हैं । इन दस विद्यार्थियों के अतिरिक्त दूसरे प्रान्तों एवं रियासतों आदि के जो और विद्यार्थी इंस्टिट्यूट में शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं उनसे ५०) मासिक फ़ीस ली जाती है। नियमित रूप से डिप्लोमा की शिक्षा ग्रहण करनेवाले विद्यार्थियों के अलावा तेल - विज्ञान के विभिन्न अंगों, तेल, साबुन, रंग-रोगन आदि की शिक्षा के लिए छः से आठ मास तक के छोटे-छोटे कोर्सों में भी कुछ विद्यार्थी दाखिल किये जाते हैं। तेल - विज्ञान की साधारण शिक्षा समाप्त करने के बाद दो विद्यार्थियों को अनुसन्धान कार्य करने की भी सुविधा दी जाती है। इनमें से एक विद्यार्थी को प्रान्तीय सरकार दो वर्ष तक ६०) मासिक की छात्रवृत्ति देती है। तेल- विज्ञान के अतिरिक्त साधारण अनुसन्धानविभाग में भी दो विद्यार्थी प्रतिवर्ष लिये जाते हैं । इन विद्यार्थियों के लिए कोई विशेष पाठ्यक्रम निर्धारित नहीं है । इन्हें कुछ महत्त्वपूर्ण श्रौद्योगिक प्रश्नों का अनुसन्धानकार्य करना होता है । इस इंस्टिट्यूट के शिक्षण कार्य का प्रमुख उद्देश ऐसे विद्यार्थी तैयार करना है जो शिक्षा समाप्त करने के बाद उद्योग-धन्धों में सहायता पहुँचायें, उनका संगठन एवं संचालन करें, मौक़ा मिलने पर अपना कारोबार भी शुरू करें और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों की तरह बाबूगिरी के लिए मारे मारे न फिरें । इंस्टिट्यूट को अपने इस उद्देश में सफलता भी मिली है। इस उद्देश को ध्यान में रखते हुए इंस्टिट्यूट में श्रम तौर पर ऐसे ही विद्यार्थियों को भर्ती करते हैं। जिन्हें उद्योग व्यवसाय से विशेष अभिरुचि होती है या जो स्वयं पूँजी लगाकर अथवा उसका प्रबन्ध कर अपने निजी कारबार चलाने का प्रबन्ध कर सकते हैं अथवा शिक्षा समाप्त करने के बाद किसी निश्चित व्यवसाय में www.umaragyanbhandar.com

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